प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यनीचे वात्सल्य तरंगिणी की दो धवल धाराएँ आप देखेंगे। कहिये, अपने मलिन मन को आप किस धारा में पखारकर निर्मल करना चाहते हैं? पहली भावना धारा यह है- मैया, मेरी कब बाढ़ैगी चोटी! और दूसरी भावना धारा यह है- बरु ए गोधन हरौ कंस सब, मोहि बंदि लै मेलौ। कभी किसी जन्म में अनुकूल अवसर मिला, तो यह अधम लेखक तो दूसरी ही भावना धारा में अपना मलिन मन धोने का प्रयत्न करेगा। अपना निर्णय आप स्वयं कर लें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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