प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 204

प्रेम योग -वियोगी हरि

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विश्व प्रेम

पहले तुम किसी एक को अपना एकमात्र जीवनाधार प्रेम पात्र मान लो, अनन्यभाव से उसी एकके हो जाओ। निश्चय ही, उसके प्रति तुम्हारा अनन्त और अप्रतिम प्रेम धीरे धीरे अखिल संसार को तुम्हारा प्रीति भाजन बना लेगा। तुम तब प्राणिमात्र में, चराचर जगत् में अपने प्रियतम का ही रूप प्रत्यंकित पाओगे। अणु अणु में अपने प्रेमपात्र को ही प्रतिविम्बित देखोगे। उस दिन अनायास ही यह भेद खुल जायेगा कि-

मैं समुझ्यौ निरधार, यह जग काँचो काँच सौ।
एकै रूप अपार, प्रतिबिंबित लखियतु, जहाँ।। - बिहारी

अपने प्यारे के अगाध प्रेम पयोधि में तुम अनायास ही इस विस्तीर्ण विश्व को ‘जल विन्दुवत्’ विलीन कर लोगे। चार्ल्स किंग्सले महोदय ने एक ही प्रेम पात्र के द्वारा अखिल विश्व की प्रेम प्राप्ति इस प्रकार व्यक्त की है-

Be sure that to have found the key to one heart is to have the key to all; that truly to love is truly to know; and truly to loave one is the first step towards truly loving all who bear the same flesh and blood with the beloved.

यह तो निश्चित बात है कि किसी एक के अन्तस्तल का मर्म समझ लेना चराचर जगत् का रहस्य जान लेना है। सच्चा प्रेम ही सच्चा ज्ञान है। किसी एक से सच्चा प्रेम करना जीव मात्र के साथ प्रेमकरने की पहली सीढ़ी है; क्योंकि अखिल विश्व के प्राणियों में तुम्हारे उस प्राण प्यारे का ही तो रक्त प्रवाहित हो रहा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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