प्रेम योग -वियोगी हरि
विश्व प्रेमपहले तुम किसी एक को अपना एकमात्र जीवनाधार प्रेम पात्र मान लो, अनन्यभाव से उसी एकके हो जाओ। निश्चय ही, उसके प्रति तुम्हारा अनन्त और अप्रतिम प्रेम धीरे धीरे अखिल संसार को तुम्हारा प्रीति भाजन बना लेगा। तुम तब प्राणिमात्र में, चराचर जगत् में अपने प्रियतम का ही रूप प्रत्यंकित पाओगे। अणु अणु में अपने प्रेमपात्र को ही प्रतिविम्बित देखोगे। उस दिन अनायास ही यह भेद खुल जायेगा कि- मैं समुझ्यौ निरधार, यह जग काँचो काँच सौ। अपने प्यारे के अगाध प्रेम पयोधि में तुम अनायास ही इस विस्तीर्ण विश्व को ‘जल विन्दुवत्’ विलीन कर लोगे। चार्ल्स किंग्सले महोदय ने एक ही प्रेम पात्र के द्वारा अखिल विश्व की प्रेम प्राप्ति इस प्रकार व्यक्त की है- Be sure that to have found the key to one heart is to have the key to all; that truly to love is truly to know; and truly to loave one is the first step towards truly loving all who bear the same flesh and blood with the beloved. यह तो निश्चित बात है कि किसी एक के अन्तस्तल का मर्म समझ लेना चराचर जगत् का रहस्य जान लेना है। सच्चा प्रेम ही सच्चा ज्ञान है। किसी एक से सच्चा प्रेम करना जीव मात्र के साथ प्रेमकरने की पहली सीढ़ी है; क्योंकि अखिल विश्व के प्राणियों में तुम्हारे उस प्राण प्यारे का ही तो रक्त प्रवाहित हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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