प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम व्याधिसचमुच प्रेम एक दुस्साध्य रोग है। इश्क एक बुरी बला तो भी इस रोग के रोगी, न जाने क्यों भाग्यवान कहे जाते हैं। पगले प्रेमी तो इस रोग राज का स्वागत करते देखे गये हैं। कहते हैं कि खुशकिस्मत ही इस दर्द का मजा जानता है। नहीं इश्क का दर्द लज्जत से खाली, प्रेम की ही भांति यह प्रेम व्याधि भी अकथनीय है, केवल अनुभवगम्य है। यह तो मजे के साथ सहने की पीड़ा है, कहने की नहीं। मन ही मन इस मर्ज की पीर उठा करती है। इस रोग नामी रोगी बोधा कह ही गये हैं- इसी से तो यह लज्जतदार है। महाकवि शेली भी तो पीड़ा को बतलाता है- प्रेम की वेदना बड़ी नहीं होती है। इस रोग को प्यारी मिठास को कामान्ध जन क्या जाने? यह दुनियादारों के हिस्से की चीज दीवाने ही इस कसक को जानते हैं। प्रीतिका.......... गाती है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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