प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम व्याधिहै री, मैं तो प्रेम दिवानी अरी, मैं प्रेम में पगली हो गयी हूँ। प्रेम के रोगने मेरे रोम रोम कर लिया है। पर क्या कहूं, ये सब लोग मेरा उपहास कर रहे हैं। हाय! मेरे दर्द का जानने हारा इस मतलबी दुनिया में कोई भी नहीं। सच है, घायल का हाल घायल ही जानता है।...... का मारा ही प्रेम के रोगी के साथ हमदर्दी दिखाता है- घायल की गति घायल जाने, की जिन लाई होय। इस पर सूर की सरस सूक्ति है- देखौ सुकल बिचारि सखी, जिय बिछुरन कौ दुख न्यारो। अनुभवी बोधा भी यही कह रहे हैं- प्रसव पीर बंध्या का जानै झलकन पहिरी पीरी। प्रेम के हरे घाव की वेदना वही जान सकेगा जो उससे कभी घायल हुआ होगा- जिसके जिगर पर एक नासूर होगा, वही दिल के जख्म को समझ सकेगा- वही समझेगा मेरे जख्मे दिल को, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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