प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 141

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम निर्वाह

किसी के साथ प्रेम का संबंध जोड़ लेना तो आसान है, पर जीवन भर उसे एक सा निभा ले जाना बड़ा ही कठिन काम है। प्रेम का निभाना सदाचारियों और शूरवीरों का ही काम है, विषयी और कायरों का नहीं। जहाँ एकांगी और एकरस प्रेम होता है, वहीं प्रेम का उच्च और पवित्र आदर्श देखने में आता है। कबीर साहब एक साखी है-

अगिनि आँच सहना सुगम, सुगम खड़ग की धार।
नेह निभावन एकरस, महा कठिन व्योहार।।

प्रेम पात्र की ओर से कैसा ही रूखा और असंतोषजनक व्यवहार क्यों न हो जाय, पर अपनी ओर से तो वही एकरस और अनन्त असीम प्रेम आजीवन स्थिर रहना चाहिए। अपने हृदय में जरा भी प्रेम की कमी आयी कि हम कहीं मुँह दिखाने लायक भी न रहे। प्रेम से पतित होकर न दीन के रहे, न दुनिया के अजी, लौ लगायी सो लगायी। हाथी का दाँत बाहर निकला सो निकला। पर है यह महान् कठिन। इससे तो प्रेम न करना ही अच्छा है। बीच में प्रीति भंग कर देने से तो यही अच्छा है कि प्रीति जोड़े ही नहीं, उस व्याधि का नाम ही न ले। जप, तप, यम नियम ध्यान धारणा आदि तो किसी न किसी भाँति सभी साध सकते हैं, पर प्रेम को एकरस निभा ले जाना किसी विरले ही वीर का काम है। कहा है-

‘तुलसी’ जप तप, नेम व्रत, सब सबही तें होय।
नेह निबाहन एकरस जानत बिरलो कोय।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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