प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम प्यालाहमारे मतवाले हरिश्चंद्र ने उस दिन वासनाओं की प्यास से छटपटाते हुए संसार से कहा था कि- प्रेम प्याले में क्या भरा हुआ है, यह उसके पीने वाले ही जानते हैं। प्रेम प्याले की मदिरा विलक्षण है। इस लोक की मदिरा तो है ही क्या, स्वर्ग की भी सुरा उसके आगे तुच्छातितुच्छ है। उसमें अनन्त सत्य है, असीम सौंदर्य है, अतुल कल्याण है। एक बार उस प्याले को ओंठ से लगा लो और अपने जीवन को जीवन्मुक्ति के रंग में रंग डालो। उस प्याले का मोहनमधु जब रोम रोम में भर जाता है, तब फिर किसी ओर शराब के पीने को जी नहीं चाहता। कबीर की एक साखी हैं- ‘कबिरा’ प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय। प्रेम प्याले की मदिरा से ही स्वर्ग सुधा ने जन्म पाया है। आबेह यात का झरना उसी प्यारे प्याले से झर रहा है। संत मलूकदास ने इस प्याले के मतवाले की दशा यों दिखायी है- दर्द दिवाना बावरा अलमस्त फकीरा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कबीरदासजी के भी एक पद की चार पंक्तियाँ ठीक यही हैं।
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