प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 114

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम प्याला

हमारे मतवाले हरिश्चंद्र ने उस दिन वासनाओं की प्यास से छटपटाते हुए संसार से कहा था कि-

पी प्रेम पियाला भर भर कर कुछ इस मय का भी देख मजा।

प्रेम प्याले में क्या भरा हुआ है, यह उसके पीने वाले ही जानते हैं। प्रेम प्याले की मदिरा विलक्षण है। इस लोक की मदिरा तो है ही क्या, स्वर्ग की भी सुरा उसके आगे तुच्छातितुच्छ है। उसमें अनन्त सत्य है, असीम सौंदर्य है, अतुल कल्याण है। एक बार उस प्याले को ओंठ से लगा लो और अपने जीवन को जीवन्मुक्ति के रंग में रंग डालो। उस प्याले का मोहनमधु जब रोम रोम में भर जाता है, तब फिर किसी ओर शराब के पीने को जी नहीं चाहता। कबीर की एक साखी हैं-

‘कबिरा’ प्याला प्रेम का, अंतर लिया लगाय।
रोम रोम में रमि रहा, और अमल क्या खाय।।

प्रेम प्याले की मदिरा से ही स्वर्ग सुधा ने जन्म पाया है। आबेह यात का झरना उसी प्यारे प्याले से झर रहा है। संत मलूकदास ने इस प्याले के मतवाले की दशा यों दिखायी है-

दर्द दिवाना बावरा अलमस्त फकीरा।
एक अकीदा लै रहा, ऐसा मन धीरा।।
प्रेम पियाला पीवता, बिसरें सब साथी।
आठ पहर झूमत रहै ज्यों मैगल हाथी।।
बंधन काटै मोह के, बैठा निरसंका।[1]
बाकी नजर न आवते क्या राजा रंका।।
साहिब मिल साहब भया, कछु रहि न तमाई।
कह ‘मलूक’ तिस घर गया जहँ पवन न जाई।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कबीरदासजी के भी एक पद की चार पंक्तियाँ ठीक यही हैं।

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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