प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमोन्मादस्वामी रामतीर्थ के प्रेमोन्माद से तो आपलोग थोड़े बहुत परिचित होंगे ही। वह भी एक गजब का मस्त था, सच्चा प्रेमी था, पूरा पागल था। वह राम बादशाह सुनिये, क्या गा रहा है। वाह! आनन्द ही आनन्द है! क्या खूब मेरे प्यारे राम! डटकर खड़ा हूँ, खौफ से खाली जाहान में। यही अवस्था तो है गीता की ‘ब्राह्मी स्थिति’। प्रेमोन्मत्त ही इस स्थिति का एकमात्र अधिकारी है। पगली दयाबाई ने बिल्कुल सच कहा है- प्रेम मगन से साधूजन, बिन गति कही न जात। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज