प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 112

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमोन्माद

सहजो की सहोदरा दया ने भी प्रेम प्रीति के दीवाने पर कुछ साखियाँ कही हैं। कहती हैं-

‘दया’ प्रेम उन्मत्त जे तनकी तनि सुधि नाहिं।
झुकै रहैं हरि रस छके, थके नेम ब्रत नाहिं।।
प्रेम मगन गे साधुजन, तिन गति कही न जात।
रोय रोय गावत हँसत, ‘दया’ अटपटी बात।।
प्रेम मगन गद्गद बचन, पुलक रोम सब अंग।
पुलकि रह्यौ मनरूप में, ‘दया’ न ह्वै चित भंग।।

उस्ताद जौक का एक प्रसिद्ध शेर है। उसमें एक पागल कहता है कि मैं प्रेमोन्माद के महोदधि की लहर का वह केश पाश हूँ सारा संसार ही मेरे पेंचोखम में घिरा हुआ है। मेरी भावनाएँ जिन्होंने इस दुनिया को परेशान कर रक्खा है, चक्कर में डाल रखा है, उलझी हुई अलकावली के समान है। शेर यह है-

वह हूँ मैं गेसुए मौजे मुहीते आज़मे वहशत,
कि है घरे हुए रूये जिमीं को पेंचोखम मेरा।

कैसा ऊँचा रहस्यवाद है! कौन उलझने जायेगा प्रेम के दीवाने की इस उलझन में। पागल का यह पेंचोखम गूँगे का सा ख्वाब है, जिसका बयान नहीं हो सकता-

गूँगे का सा है ख्वाब बयाँ हो नहीं सकता।

जो प्रेम में दीवाने हैं, बेहोश हैं, वे ही तो असल में होशियार हैं। ऐसे सोते हुए दिलवाले ही तो जाग रहे हैं-

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जगर्ति संयमी। - गीता

मौलाना रूम ने क्या अच्छा कहा है कि ऐसे बेहोश दिलों पर तो भाई! जान तक निसार करने को जी चाहता है। पर यह दीवानगी, यह बेहोशी मिलती कैसे है? सुनो, अगर एक बार भी उस प्यारे राम की झलक पा जाओ, तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि तुम इतने मस्त या पागल हो जाओगे कि अपने दुनियाबी दिल और जिस्म में आग लगा दोगे। यह दावा किसी ऐसे वैसे आदमी का नहीं है, सूफी प्रेम के सूर्य मौलाना जलाल उद्दीन रूमी का है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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