प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमोन्मादसहजो की सहोदरा दया ने भी प्रेम प्रीति के दीवाने पर कुछ साखियाँ कही हैं। कहती हैं- ‘दया’ प्रेम उन्मत्त जे तनकी तनि सुधि नाहिं। उस्ताद जौक का एक प्रसिद्ध शेर है। उसमें एक पागल कहता है कि मैं प्रेमोन्माद के महोदधि की लहर का वह केश पाश हूँ सारा संसार ही मेरे पेंचोखम में घिरा हुआ है। मेरी भावनाएँ जिन्होंने इस दुनिया को परेशान कर रक्खा है, चक्कर में डाल रखा है, उलझी हुई अलकावली के समान है। शेर यह है- वह हूँ मैं गेसुए मौजे मुहीते आज़मे वहशत, कैसा ऊँचा रहस्यवाद है! कौन उलझने जायेगा प्रेम के दीवाने की इस उलझन में। पागल का यह पेंचोखम गूँगे का सा ख्वाब है, जिसका बयान नहीं हो सकता- जो प्रेम में दीवाने हैं, बेहोश हैं, वे ही तो असल में होशियार हैं। ऐसे सोते हुए दिलवाले ही तो जाग रहे हैं- मौलाना रूम ने क्या अच्छा कहा है कि ऐसे बेहोश दिलों पर तो भाई! जान तक निसार करने को जी चाहता है। पर यह दीवानगी, यह बेहोशी मिलती कैसे है? सुनो, अगर एक बार भी उस प्यारे राम की झलक पा जाओ, तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि तुम इतने मस्त या पागल हो जाओगे कि अपने दुनियाबी दिल और जिस्म में आग लगा दोगे। यह दावा किसी ऐसे वैसे आदमी का नहीं है, सूफी प्रेम के सूर्य मौलाना जलाल उद्दीन रूमी का है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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