प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 322

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रकृति में ईश्वर प्रेम

पुण्य प्रभात, सरला संध्या, सुचारू चंद्रोदय, शीतल मन्द सुरभित समीर, पद्मपूर्ण सरोवर, निर्मल निर्झर, कामोद्दीपक वसन्त वैभव आदि प्राकृतिक दृश्यों की माधुरीमय मनोरमता पर अगणित साहित्यिकक सूक्तियों और अनोखी सूझों का हमारे सुकवियों ने एक अनुपम भारती भण्डार भर रक्खा है। निस्संदेह उन कुशल काव्य कलाकारों ने कमाल का प्रकृति चित्रण किया है। गजब की हैं उनकी सूझें। बरबस मुँह से ‘वाह-वाह’ निकल पड़ती है। खासा मनोरंजन हो जाता है। कौन ऐसा अभागा होगा, जो उस नवरसमयी प्रकृति वर्णनों का असीम आनन्द न लूटना चाहेगा? किसी सूक्ति में श्रृंगार की मधुर मादकता मिलेगी, तो किसी में आपको शान्त रस की स्वर्गीय सुधा प्राप्त हो जायेगी। तात्पर्य यह है कि उन सुकवियों का काव्य कौशल देखते ही बनता है। पर खेद है कि हमारा प्रस्तुत विषय, एक प्रकार से, उन मनोरंजिनी सूक्तियों के प्रति उदासीन ही रहेगा। हमारी दृष्टि में तो प्रकृति एक दर्पण है, जिसमें हम सुंदरतम प्रेम का प्रतिबिम्ब देखा करते हैं। नेचर वह आईना है, जिसमें हमें अपनी रूहानी मस्ती की प्यारी सूरत नजर आती है। इस दशा में प्रकृति में ‘मैं’ की ओर ‘मैं’ में प्रकृति की प्यारी झलक देखने को मिला करती है, प्रेम का सागर लहराने लगता है-

नशे में जवानी के माशूक नेचर
है लपटी हुई ‘राम’ से मस्त होकर।
जिधर देखता हूँ जहाँ देखता हूँ
मैं अपनी ही ताव औ शाँ देखता हूँ।।

प्रकृति रानी ने यह सारा सुहाग सिंगार मेरे प्रेम को रिझाने के लिये ही सँवारा है। जहाँ देखता हूँ तहाँ मेरा प्रेम ही प्रेम है। प्रकृति के रूप में यह मेरा प्यारा प्रेम ही जहाँ तहाँ दिखायी दे रहा है। प्यारी छबीली नेचर मेरे प्यारे प्रेम पर जान दे रही है। मस्त स्वामी राम झूम झूमकर कैसा गा रहा है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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