प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का सत्संगप्रेमी रैदास आज फूले नहीं समाते हैं। प्रेम मग्न होकर आप गा रहे हैं- आज दिवस लेऊँ बलिहारा, बलिहारी! आज मेरे घर प्रियतम का एक प्यारा पधारा है। धन्य है आज का मंगल दिवस! उसके स्वागत सत्कार से आज मुझे अवकाश ही कहाँ। आज मेरे यहाँ महामहोत्सव है। सुनूँ, उस प्रेम पुरी से वह क्या संदेशा लेकर आया है। कृष्ण सखा उद्धव का दर्शन पाकर गोपियों ने भी तो गद्गद होकर कहा था- ऊधो, हम आजु भई बड़भागी। उद्धव! तुम्हें देखकर आज हमने मानो अपने प्यारे कृष्ण को ही देख लिया। हमें आज उन नेत्रों का दर्शन मिल रहा है, जिन्होंने कृष्ण के रूप रस का अहोरात्र पान किया है। तुम हमारे प्यारे के प्यारे हो। भले पधारे हो। विराजो, ब्रज राज कुमार का संदेशा सुनाकर हमें कृतार्थ करो। तुम्हारे सत्संग लाभ से कौन कृतकृत्य न हो जायेगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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