प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 186

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमियों का सत्संग

प्रेमी रैदास आज फूले नहीं समाते हैं। प्रेम मग्न होकर आप गा रहे हैं-

आज दिवस लेऊँ बलिहारा,
मेरे गृह आया पीव का प्यारा।

बलिहारी! आज मेरे घर प्रियतम का एक प्यारा पधारा है। धन्य है आज का मंगल दिवस! उसके स्वागत सत्कार से आज मुझे अवकाश ही कहाँ। आज मेरे यहाँ महामहोत्सव है। सुनूँ, उस प्रेम पुरी से वह क्या संदेशा लेकर आया है।

कृष्ण सखा उद्धव का दर्शन पाकर गोपियों ने भी तो गद्गद होकर कहा था-

ऊधो, हम आजु भई बड़भागी।
जैसे सुमन गंध लै आवतु पवन मधुप अनुरागी।।
अति आनंद बढ़यो अँग अँग में, परै न यह सुख त्यागी।
बिसरे सब दुख देखत तुमकों, स्याम सुंदर हम लागी।। - सूर

उद्धव! तुम्हें देखकर आज हमने मानो अपने प्यारे कृष्ण को ही देख लिया। हमें आज उन नेत्रों का दर्शन मिल रहा है, जिन्होंने कृष्ण के रूप रस का अहोरात्र पान किया है। तुम हमारे प्यारे के प्यारे हो। भले पधारे हो। विराजो, ब्रज राज कुमार का संदेशा सुनाकर हमें कृतार्थ करो। तुम्हारे सत्संग लाभ से कौन कृतकृत्य न हो जायेगा?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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