प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 348

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम महिमा

प्रह्लाद के प्रेम ने ही तो नृसिंह भगवा को उस पत्थर के खम्भे से प्रकट किया था। कितना प्रबल न होगा उस बालभक्त का प्रेम!

सेवक एक तें एक अनेक भये 'तुलसी' तिहुँ तापन डाढ़े।
प्रेम बदौं प्रहलादहि कौ, जिन पाहनतें परमेसुर काढ़े।।

गोसाईंजी के मत से 'मूर्ति पूजा' का श्रीगणेश उसी दिन से हुआ-

प्रीति प्रतीति बढ़ी तुलसी तबतें सब पाहन पूजन लागे।

मौलाना रूप प्रेम की महिमा का गान करते हुए कैसे मस्त हो रहे हैं! कहते हैं-'ऐ मेरे इश्क! तू खुश रह, क्योंकि मुझको तुझसे आराम मिलता है। तू ही मेरा सौदा है, दिन रात का काम है। ऐ मेरी हर बीमारी के इलाज! तू खुश रह, मुझ पर कृपा दृष्टि बनाये रख; तू ही मेरा वैद्य है, बीमारियों से प्राकृतिक संस्कारों से तू ही छुटकारा दिलाने वाला है। ऐ मेरे प्यारे इश्क! तू मेरे लिए अफलातून और जालीनूस है। मेरी तरफ आ और मुझे तन्दुरुस्त बना। XXX तेरे घोड़े पर सवार होकर जमीन की खाक भी आसमान की सैर करती है। तेरा इशारा पाकर ही पर्वत नाचने लग जाते हैं।'[1]एक है प्रेम की महिमा। अनन्त महिमामय है वह साधक जो प्रेम की साधना किया करता है। प्रेमी ही पुरुषोत्तम है-

ज्ञान ध्यान मद्धिम सबै, जप तप संजम नेम।
मान सो उत्तम जगत जन, जो प्रतिपारै प्रेम।। - उसमान

आओ, अब हमलोग प्रेमी हरिश्चंद्र के साथ प्रेम की बधाई गाकर अपनी अपनी रसना को पवित्र करें-

सब मिलि गाओ प्रेम बधाई।
यहि संसार रतन इक प्रेमहि, और बादि चतुराई।।
प्रेम बिना फीकी सब बातें, कहहु न लाख बनाई।
जोग ध्यान जप तप ब्रत पूजा, प्रेम बिना बिनसाई।।
हाव भाव रस रंग रीति बहु, काव्य कला कुसलाई।
बिना लोन बिंजन सो सबही, प्रेमरहित दरसाई।।
प्रेमहि सों हरिहू प्रगटत हैं, यदपि ब्रहम जग राई।
तासों यहि जग प्रेम सार है, और न आन उपाई।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मौलाना रूम और उनका काव्य

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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