प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम महिमाप्रह्लाद के प्रेम ने ही तो नृसिंह भगवा को उस पत्थर के खम्भे से प्रकट किया था। कितना प्रबल न होगा उस बालभक्त का प्रेम! सेवक एक तें एक अनेक भये 'तुलसी' तिहुँ तापन डाढ़े। गोसाईंजी के मत से 'मूर्ति पूजा' का श्रीगणेश उसी दिन से हुआ- मौलाना रूप प्रेम की महिमा का गान करते हुए कैसे मस्त हो रहे हैं! कहते हैं-'ऐ मेरे इश्क! तू खुश रह, क्योंकि मुझको तुझसे आराम मिलता है। तू ही मेरा सौदा है, दिन रात का काम है। ऐ मेरी हर बीमारी के इलाज! तू खुश रह, मुझ पर कृपा दृष्टि बनाये रख; तू ही मेरा वैद्य है, बीमारियों से प्राकृतिक संस्कारों से तू ही छुटकारा दिलाने वाला है। ऐ मेरे प्यारे इश्क! तू मेरे लिए अफलातून और जालीनूस है। मेरी तरफ आ और मुझे तन्दुरुस्त बना। XXX तेरे घोड़े पर सवार होकर जमीन की खाक भी आसमान की सैर करती है। तेरा इशारा पाकर ही पर्वत नाचने लग जाते हैं।'[1]एक है प्रेम की महिमा। अनन्त महिमामय है वह साधक जो प्रेम की साधना किया करता है। प्रेमी ही पुरुषोत्तम है- ज्ञान ध्यान मद्धिम सबै, जप तप संजम नेम। आओ, अब हमलोग प्रेमी हरिश्चंद्र के साथ प्रेम की बधाई गाकर अपनी अपनी रसना को पवित्र करें- सब मिलि गाओ प्रेम बधाई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मौलाना रूम और उनका काव्य
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