प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 130

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम मैत्री

भाई, मित्रता तो बस प्रेममयी। सत्य, नित्य और कल्याण युक्त मैत्री निष्काम और अनन्त प्रेम से ही उत्पन्न होती है। प्रेम मैत्री स्वार्थवासना से मुक्त और स्नेह भावना से बद्ध होती है। स्नेह का एक कोमल तन्तु, इश्क का एक कच्चा धागा दो मजबूत दिलों को बाँधकर एक दिल कर देता है। ऐसी सच्ची दोस्ती में खुदगर्जी के लिए जरा भी जगह नहीं। बदले की भावना वहाँ ढूँढ़ने पर भी न मिलेगी। जिसमें बदला है, वह दोस्ती नहीं, एक तिज़ारत है-

दोस्ती और किसी गरज के लिये,
यह तिज़ारत है दोस्ती ही नहीं।

मित्रता में तो देने ही देने का भाव है, लेने का नही। बिना किसी प्रकार के लाभ या लोभ के जिसकी मित्रता स्थिर रहती है, वही अपना सच्चा मित्र है। महात्मा कबीरदास ने कहा है-

वाही नरको जान तू पूरा अपना मीत।
जो राखै बिन लाभ के तुझसे प्रीत प्रतीत।।

यहाँ रहीम की भी एक सूक्ति याद आ गयी है-

यह न ‘रहीम’ सराहिए, देन लेन की प्रीति।
प्राननि बाजी राखिए, हार होय कै जीति।।

तन, धन और मन दे देना तो एक मामूली सी बात है, प्रेमी मित्र को तो, भाई, मित्रता की बलि वेदी पर अपनी प्यारी जान भी हँसते हँसते चढ़ा देनी चाहिए। दोस्ती निभाते हुए मर जाना मरना नहीं, सदा के लिए अमर हो जाना है। कविवर नूरमुहम्मद ने, ‘इन्द्रावती’ में एक स्थल पर कहा है-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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