प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों की अभिलाषाएँप्रेमी भी कैसे पागल होते हैं! पहले तो वे कोई अच्छा करते ही नहीं, यदि कभी कोई कामना की भी तो वह एक अजीब पागलपन से भरी होती है। कोई प्रेमी अपने प्यारे के बाग में फूल पत्ती बनना चाहेगा, तो कोई उसकी गली धूल बन जाने में ही अपने को महान् भाग्यवान समझेगा। किसी के हृदय में अपने निठुर प्रियतम को देखते देखते ही प्राण त्याग कर देने की आग जल रही होगी, तो किसी के मन में यह अभिलाषा रहती होगी कि प्रेमपात्र का पत्र, मरते समय, उसके मुँह में तुलसीदल की जगह पर रख दिया जाय! कैसी अद्भुत और अनुपम अभिलाषाएँ हैं! एक प्रेमी की अभिलाषा देखिये। कहता है, यदि मरते समय मेरा प्यारा मित्र अपने हाथ से मेरे मुँह में कुछ पानी चुआ दे, तो मीत की कड़वाहट से बढ़कर, मेरी समझ में, दुनिया में सचमुच कोई मीठा शर्बत नहीं है- मुँह में गर पानी चुआवे थार अपने हाथ से, एक और हसरत बाकी है। वह यह कि- आँखें मेरी तलुओं से वह मल जाये तो अच्छा, मरते दम भी अगर वह प्यारा आकर अपने तलुओं से मरा या अभागिनी आँखें मल जाय तो अच्छा हो। किसी तरह उसके पैर चूमने की हसरत तो दिल से निकल जाय। लाख करो, भाई ये सब तड़प भरी हसरतें निकलने की नहीं। अपना ऐसा भाग्य कहाँ, जो उसे देखते देखते मौत को छाती से लगायें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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