प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का मत मज़हबयही दशा स्मृतियों की भी है- सब धर्मन तें परे धर्म जो प्रीतम प्रेम सगाई। सारांश यह कि- याही तें सब वेद विहित अरु लोक धर्महूँ त्यागे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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