प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का मत मज़हबप्रिय दर्शन के प्यासे कबीर ने क्या अच्छा कहा है- सबही तरुतर जायके सब फल लीनें चीख। इस नीरस हृदय पर तो प्रेमियों के मत मजहब की अनोखी तसबीर कुछ ऐसी खिंची हुई है- हाँ, हम सब पंथन तें न्यारे। जाने दो, दर्शन शास्त्रों के झमेले में न पड़ो। तुम तो वैदिक ज्ञान प्राप्त करके आत्म साक्षात्कार कर लो। उस ‘अभेद’ का भेद तुम्हें वेद ही बता सकेंगे। यह खूब कहा, भाई! तो अभेद कौ भेद कहा ये बेद बापुरे जानैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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