प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और तुलसीदाससूर की तरह तुलसी ने भी वात्सल्य रस का अलौकिक आस्वादन किया और कराया है। सूर के बाद इस महारस के वर्णन करने में तुलसी का ही स्थान आता है कहीं कहीं तो ये दोनों महात्मा इस क्षेत्र में समकक्ष प्रतीत होते हैं। जो हो, तुलसी का भी वात्सल्य वर्णन बहुत उच्च, मनोमुग्धकारी तथा हृदयहारी हुआ है। निम्नलिखित सुमधुर पद्य पढ़ या सुनकर किस सहृदय के दृग् मधुप श्रीरामलला का रूप मकरन्द पान करने के लिए लालायित न हो जायँगे- पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि, मंजु बनी मनि माल हिये। भक्तों के मनोमंदिर में बसने वाले इसी बाल रूप का ध्यान भागवत भूषण काकभुशुण्डि अहोरात्र किया करते हैं। विहग श्रेष्ठ गरुड़ के आगे आपने अपने इष्टदेव की महिमा एक बार इस प्रकार गायी थी- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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