प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 269

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

मैया के गले से लिपटकर कुँवर कन्हाई भी रोने लगे। मेरी मैया, तूने मुझे पहचाना नहीं क्या? अरी, मैं तेरा वही लाल हूँ। तू मुझे, मैया, ब्रज से माखन मिश्री लायी है? लायी तो होगी,पर खिझा खिझाकर देगी। मैया, तू तो बोलती भी नहीं-

अब हँसि भेटहु, कहि मोहि निज सुत,
‘बाल तिहारो हौ’ नंद दुहाई।

उसका समय का वह मिलन दृश्य जिस किसी ने देखा होगा, उसके भाग्य का क्या कहना-

रोम पुलकि, गदगद सब तेहि छिन,
जलधारा नैननि बरसाई।

प्रेम मूर्ति व्रजवासी आनन्द विह्वल हो कहने लगे-

हम तौ इतने ही सुख पायौ।
सुंदर स्याम कमल दल लोचन बहुरि सुदरस देखायौ।।
कहा भयौ जो लोग कहत हैं, कान्ह द्वारका छायौ।
महाराज ह्वै मात पितहिं मिलि तऊ न ब्रज बिसरायौ।।

एक बार फिर यह दोहराना पड़ेगा कि वात्सल्य स्नेह का सूर जैसा भावुक और सच्चा चित्रकार न हुआ है, न होगा! सूर का वात्सल्य वर्णन पढ़कर, मैं तो दावे के साथ कहता हूँ कि अत्यंत नीरस हृदय में भी स्नेह और करुणारस की हिलोरें आन्दोलित होने लगेंगी। धन्य, सूर, धन्य! वास्तव में ‘तत्व तत्व सूरा कही।’ संगीताचार्य तानसेन कीक इस उक्ति में तनिक भी अत्युक्ति नहीं है-

किधौ सूर कौ सर लग्यौ, किधौं सूर की पीर।
किधौं सूर कौ पद लग्या, तन मन धुनत सरीर।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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