प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 268

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

ऊधो, मोहि ब्रज बिसरत नाहीं।
वृन्दाबन गोकुल तन आवत सघन तृनन की छाहीं।।
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत।
माखन रोटी दही सजायौ अति हित साथ खवावत।।

मित्र उद्व! यशोदा मैया की वह अनन्त स्नेहमयी गोद क्या मुझे अब कभी बैठने को मिलेगी? कहाँ गये वे दिन, जब मैं मचल मचलकर अपनी मैया से माखन माँगा करता था। सखा, आज मेरा मन ब्रज की ओर उड़ सा रहा है। ऐं! मुझे क्या हो गया है, मित्र! सँभालो, मुझ सँभालो। बाबा, मुझे वहीं बुलालो। मैया, मुझे अपी गोद में बिठा ले। नेक सा माखन और दे, मेरी मैया! हा!

जा दिनतें हम तुमतें बिछुरे, काहु न कह्यौ ‘कन्हैया।’

आज सूर्य ग्रहण है पुण्य क्षेत्र कुरुक्षेत्र पर इधर से सब यादवों समेत बलराम और श्रीकृष्ण और उधर से गोप गोपियों सहित नन्द बाबा आये हैं। कैसा मणि कांचन योग अनायास प्राप्त हुआ है! नन्द यशोदा के सुख सिन्धु की थाह आज कौन ला सकता है। धन्य यह दिवस!

उमग्यौ नेह समुद्र दसहुँ दिसि, परिमिति कही न जाय।
‘सूरदास’ वह सुख सो जानै, जाके हृदय समाय।।

कृष्ण बलराम ने बाबा और मैया का चरण स्पर्श किया। पगली यशोदा से आसीस भी न देते बनी। स्नेहाधिक्य से मूर्च्छित हो मैया गिर पड़ी। बलिहारी!

तेरी यह जीवन भूरि, मिलहि किन माई!
महाराज जदुनाथ कहावत, तेरो तौ वहि कुँवर कन्हाई।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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