प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासकहना कि मैया, माता भी कहीं ‘धाय’ कही जाती है? यह तुमने कैसी अनुचित बात कहला भेजी है। इसका हमें सचमुच बड़ा बुरा लगा है। जिसने अपना दूध पिला पिलाकर मुझे इतना बड़ा कर दिया, उस माता की महिमा मैं कैसे कह सकता हूँ? उस यशोदा मैया की पवित्र स्मृति मैं कैसे भुला सकता हूँ? सच्ची माता तो मेरी, मैया तुम्हीं हो। अपने को ‘धाय’ कहकर क्यों मुझे पाप भागी बना रही हो? मुझ जैसा अभागा आज कौन होगा, जिसने अपने बाबा और मैया की कुछ भी सेवा न कर पायी? हा! जा दिनतें हम तुमतें बिछुरे, काहु न कह्यो ‘कन्हैया।’ आज उद्धव व्रज से लौटकर आये हैं। श्रीकृष्ण के आगे आपने तबके नहीं अबके व्रज का सजीव चित्र खींचकर रख दिया। नन्द नन्दन अपने बचपन का घर धेकने को अधीर हो उठे। उद्धव ने भी बूढ़े बाबा और पगली मैया को एक बार देख आने का आग्रह किया। नन्द और यशोदा की दशा क्या कहूँ, यदुराज! कहना चाहूँ तो कह भी नहीं सकता- नन्द जसोदा मारग जोवत नित उठि साँझ सबारे। बाबा और मैया की यह दशा सुनते ही श्रीकृष्ण ‘मैया, मैया’ की रट लगाकर रोने लगे। मथुराधीश आज ‘कन्हैया’ बन जाने को व्याकुल हो उठे। माता की वात्सल्य रस धारा में कलोल करने की उत्कण्ठा पल-पल पर बढ़ने लगी। उद्धव से अधीर हो कहने लगे- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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