प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासकहाँ तक धीरज बाँदे रहूँ। लोग कितना ही समझायें कुछ समझ में आता नहीं। इस हत्यारे माखन को देखकर छाती में एक शूल सा उठता है। इसी माखन के पीछे इन हाथों ने जल न गये ये दुष्ट हाथ- मेरे मोहन को, मेरे दुलारे गोपाललाल को ऊखल से कसकर बाँध दिया था! हाय! उस दिन की मेरे लाल की वे आँसुओं से भरी हुई लाल लाल आँखें आज भी इस अभागिनी की अंधी आँखों में कसक रही हैं। कह देना, पथिक, कि भैया! भूल जाओ अब उस दिन की बात और अपनी उस धाय को अब भी एक बार अपना मुख चंद्र दिखाकर माफ कर आओ। हाय! अब उसे कौन वहाँ बिन माँगे माखन, रोटी देता होगा। कौन मेरे प्यारे कृष्ण को अब वहाँ हृदय से लगा लगाकर प्यार करता होगा! मुझ जैसी माता के होते हुए भी आज उन बच्चों को परदेश में कितना अधिक कष्ट होता होगा। पथिक! तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, राम और कृष्ण को इतना तो कृपा कर सुना देना- कहियो पथिक जाय, घर आवहु रामकृष्ण दोउ भैया। उधर से भी एक पथिक नन्दगाँव की ओर जा रहा था। सो रामकृष्ण ने उसके द्वारा नन्दबाबा और यशोदा मैया को अपनी ओर से यह कहला भेजा कि घबराने की कोई बात नहीं, हम दोनों भाई अवश्य आकर आपके श्रीचरणों का दर्शन करेंगे। सूर की ही करुणामयी वाणी में उस सँदेसे को सुनिये- पथिक, सँदेसो कहियो जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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