प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 266

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

कहाँ तक धीरज बाँदे रहूँ। लोग कितना ही समझायें कुछ समझ में आता नहीं। इस हत्यारे माखन को देखकर छाती में एक शूल सा उठता है। इसी माखन के पीछे इन हाथों ने जल न गये ये दुष्ट हाथ- मेरे मोहन को, मेरे दुलारे गोपाललाल को ऊखल से कसकर बाँध दिया था! हाय! उस दिन की मेरे लाल की वे आँसुओं से भरी हुई लाल लाल आँखें आज भी इस अभागिनी की अंधी आँखों में कसक रही हैं। कह देना, पथिक, कि भैया! भूल जाओ अब उस दिन की बात और अपनी उस धाय को अब भी एक बार अपना मुख चंद्र दिखाकर माफ कर आओ। हाय! अब उसे कौन वहाँ बिन माँगे माखन, रोटी देता होगा। कौन मेरे प्यारे कृष्ण को अब वहाँ हृदय से लगा लगाकर प्यार करता होगा! मुझ जैसी माता के होते हुए भी आज उन बच्चों को परदेश में कितना अधिक कष्ट होता होगा। पथिक! तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, राम और कृष्ण को इतना तो कृपा कर सुना देना-

कहियो पथिक जाय, घर आवहु रामकृष्ण दोउ भैया।
‘सूरदास’ कत होत दुखारी, जिनकी मो सी मैया।।

उधर से भी एक पथिक नन्दगाँव की ओर जा रहा था। सो रामकृष्ण ने उसके द्वारा नन्दबाबा और यशोदा मैया को अपनी ओर से यह कहला भेजा कि घबराने की कोई बात नहीं, हम दोनों भाई अवश्य आकर आपके श्रीचरणों का दर्शन करेंगे। सूर की ही करुणामयी वाणी में उस सँदेसे को सुनिये-

पथिक, सँदेसो कहियो जाय।
आवैंगे हम दोनों भैया मैया जनि अकुलाय।।
याकौ बिलग बहुत हम मान्यो, जो कहि पठयो ‘धाय’।
कहँलौं कीर्ति मानिये तुम्हरी, बड़ो कियौ पय प्याय।।
कहियो जाय नन्दबाबा सों, अरु गहि पकरौ पाय।
दोऊ दुखी होन नहिं पावैं, धूमरि धौरी गाय।।
जद्यपि मथुर विभव बहुत है, तुम बिन कछु न सुहाय।
‘सूरदास’ ब्रजवासी लोगनि भेंटत हृदय जुड़ाय।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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