प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासमैं तो तुम्हारे पुत्र की एक तुच्छ छाय हूँ। इस नाते से मुझ पर, आशा है, तुम दया भाव ही रक्खोगी। है तो ढिठाई, पर, विश्वास है, तुम क्षमा कर दोगी। कृष्ण तुम्हारा जाया हुआ लड़का है। इससे उसका स्वभाव तो तुम जानती ही हो, तुमसे छिपा ही क्या है। पर उस गोपाल का लड़कपन मेरी गोद में बीता है। इससे मैं भी कुछ कुछ उसकी प्रकृति पहचानती हूँ। मेरे क्षमा करने मुझे ‘मेरे’ शब शब्द पर- मेरे लाल को माखन रोटी बहुत भाती है। सबेरे उठते ही वह मुझसे मचल मचलकर माखन रोटी माँगा करता था। वहाँ वह संकोच करता होगा। इसलिए बिना माँगे ही मेरे कन्हैया को तुम माखन रोटी दे दियाकरो। एक बात और है। उबटन, गरम जल और तेल फुलेल देखते ही वह भाग जाता है। मैं तो उसे जो जो वह माँगता, वही वही देकर बड़े लाड़ प्यार सेपुचकार पुचकारकर नहला दिया करती थी। सबसे बड़ी चिन्ता तो उसकी मुझे दिन रात यह रहती है कि वह तुम्हारे यहाँ बात बात में संकोच करता होगा। मेरार गोपाल सचमुच बड़ा संकोची है। पथिक! इतना और तुम महारानी देवकी से जाकर कह देना कि- तुम रानी बसुदेव- गिरिहिनी, हम अही ब्रज बासी। और, कृपाकर मेरे कन्हैया के पास मेरी असीस पहुँचा देना। वह राजदरबार में बैठा हो, और शायद तुम्हें तुरंत न मिल सके। इससे कभी अवसर पाकर इतना तो उसे सुना ही देना- कहियो स्याम सों समुझाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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