प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 271

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और तुलसीदास

इष्टदेव मम बालक रामा। सोभा बपुष कोटिसत कामा।।
पीत झीनि झिगुली तन सोही। किलकिन चितवनि भावति मोही।।
रूप रासि नृप अजिर बिहारी। नाचहिं निज प्रतिबिंब निहारी।।
लरिकाई जहँ जहँ फिरहिं, तहँ तहँ संग उड़ाउँ।
जूठनि परइ अजिर महँ, सोइ उठाइ करि खाउँ।।

ऐसे शिशु की जूठन उठा उठाकर खाने को किसका मन न ललचायेगा। ललचाया करे, पर मिलेगा तो वह भुशुण्डि जैसे किसी विरले ही भाग्यवान् को।

महारानी कौशल्या अपने छोटे छोटे चारों बच्चों को दुलार प्यार कर रही हैं। कहती हैं- कब मेरे लाल बड़े होंगे। कब मैं इन्हें बालकों के अनुरूप आभूषण और वस्त्र पहनाकर इनका श्रृंगार करूँगी? कब, मेरे भैया! इस अँगना में तुम सब ठुमक ठुमककर दौड़ते फिरोगे? कब बोलने लगोगे, लाल! और मुझे तुतला- तुतलाकर ‘माँ’ कब कहोगे? वह सोने की घड़ी कब आयगी, जब मेरी ये अभिलाषाएँ पूरी होंगी-

ह्वैहौ, लाल कबहिं बड़े, बलि भैया।
राम लखन भावते भरत रिपुदवन चारु चारय्यौ भैया।।
बाल बिभूषन बसन मनोहर अंगनि बिरचि बनैहौं।
सोभा निरखि, निछावरि करि, उर लाइ वारने जैहौं।।
छगन मगन अँगना खेलिहौ मिलि, ठुमुक ठुमुक कब धैहौ?
कलबल वचन तोतरे मंजुल कहि ‘माँ’ मोहि बुलैहौ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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