प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और तुलसीदासइष्टदेव मम बालक रामा। सोभा बपुष कोटिसत कामा।। ऐसे शिशु की जूठन उठा उठाकर खाने को किसका मन न ललचायेगा। ललचाया करे, पर मिलेगा तो वह भुशुण्डि जैसे किसी विरले ही भाग्यवान् को। महारानी कौशल्या अपने छोटे छोटे चारों बच्चों को दुलार प्यार कर रही हैं। कहती हैं- कब मेरे लाल बड़े होंगे। कब मैं इन्हें बालकों के अनुरूप आभूषण और वस्त्र पहनाकर इनका श्रृंगार करूँगी? कब, मेरे भैया! इस अँगना में तुम सब ठुमक ठुमककर दौड़ते फिरोगे? कब बोलने लगोगे, लाल! और मुझे तुतला- तुतलाकर ‘माँ’ कब कहोगे? वह सोने की घड़ी कब आयगी, जब मेरी ये अभिलाषाएँ पूरी होंगी- ह्वैहौ, लाल कबहिं बड़े, बलि भैया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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