प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 187

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमियों का सत्संग

प्यारे कृष्ण की परमानुरागिणी गोपियों के अपूर्व सत्संग से विज्ञवर उद्धव भी कृतार्थ हो गये। प्रेमियों का संग बड़े बड़े ज्ञानियों को भी क्या से क्या कर देता है, इसे आप उद्धव के ही मुख से सुनें। प्रेम प्रतिमा ब्रजांगनाओं से श्रीकृष्ण के परम मित्र उद्धव, सुनिये, क्या कहते हैं-

तुम्हरे दरस भगति मैं पाई। वह मत त्याग्यो, यह मति आई।।
तुम मम गुरु मैं शिष्य तुम्हारो। भगति सुनाय जगत निस्तारो।। - सुर

अलौकिक प्रभाव है प्रेमियों के सत्संग का। उद्वजी महाराज क्या बनकर तो ब्रज में आये थे, और क्या होकर चले! क्या हुआ उनका वह सब अत्युच्च अध्यात्मवाद? अच्छा मूँड़ा वेदान्त केसरी को उन गँवार गोपियों ने!

उन्हीं से प्रीति करो जो अपने प्रियतम के प्यारे हों, प्रेम की मदिरा में चूर रहते हों, आठों पहर मस्ती में झूमते रहते हों, इश्क के रस में छके रहते हों। भाई, प्रभु के ऐसे ही लाड़लों का संग करो-

आठ पहर जो छकि रहैं, मस्त आपने हाल।
‘पलटू’ उनसे प्रीति कर वे साहिब को लाल।।

पर ऐसे ऊँचे प्रेमी मिलते कहाँ हैं। क्षणमात्र भी ऐसे उन्मत्त प्रेमी का साथ हो जाय, तो प्रेम का निगूढ़ रहस्य समझ में फिर देर ही कितनी लगे। देखते ही देखते कुछ का कुछ हो जाय। पर वह राम का लाड़ला कहीं दिखायी भी तो दे। क्या करें, ऐसा प्रेमी कहीं आज तक मिला ही नहीं-

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिला न कोय।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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