प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों का सत्संगप्यारे कृष्ण की परमानुरागिणी गोपियों के अपूर्व सत्संग से विज्ञवर उद्धव भी कृतार्थ हो गये। प्रेमियों का संग बड़े बड़े ज्ञानियों को भी क्या से क्या कर देता है, इसे आप उद्धव के ही मुख से सुनें। प्रेम प्रतिमा ब्रजांगनाओं से श्रीकृष्ण के परम मित्र उद्धव, सुनिये, क्या कहते हैं- तुम्हरे दरस भगति मैं पाई। वह मत त्याग्यो, यह मति आई।। अलौकिक प्रभाव है प्रेमियों के सत्संग का। उद्वजी महाराज क्या बनकर तो ब्रज में आये थे, और क्या होकर चले! क्या हुआ उनका वह सब अत्युच्च अध्यात्मवाद? अच्छा मूँड़ा वेदान्त केसरी को उन गँवार गोपियों ने! उन्हीं से प्रीति करो जो अपने प्रियतम के प्यारे हों, प्रेम की मदिरा में चूर रहते हों, आठों पहर मस्ती में झूमते रहते हों, इश्क के रस में छके रहते हों। भाई, प्रभु के ऐसे ही लाड़लों का संग करो- आठ पहर जो छकि रहैं, मस्त आपने हाल। पर ऐसे ऊँचे प्रेमी मिलते कहाँ हैं। क्षणमात्र भी ऐसे उन्मत्त प्रेमी का साथ हो जाय, तो प्रेम का निगूढ़ रहस्य समझ में फिर देर ही कितनी लगे। देखते ही देखते कुछ का कुछ हो जाय। पर वह राम का लाड़ला कहीं दिखायी भी तो दे। क्या करें, ऐसा प्रेमी कहीं आज तक मिला ही नहीं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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