प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम व्याधिअच्छा, आखिर यह रोग है क्या? कोई प्रेमी ही बता दे, इसके क्या लक्षण हैं? रोगी को तो जरूर इसका पता होगा। मरीज को तो अपना यह मर्ज बता देना चाहिए। कहो, भाई, यह कैसा होता है? तुम तो इस रोग के अनुभवी हो न? फिर बताते क्यों नहीं? ऐं! क्या कहा कि- छाती जला करै है सोज़े दरूँ बलासे, क्या जानूँ कि क्या है। अंदर ही अंदर सुलगती हुई आग में छाती जलती रहती है। जिगर में जैसे एक आग सी लगी है। कब नहीं सकता है कि यह क्ला बला है। लो, सुन लिया? मरीज साहब खुद ही परेशान है! एक आग सी सीने में लगी है,- बस, इतना है वह अपने रोग का लक्षण बतला सके हैं। फिर पूछा तो कुछ कह न सके। दिल पर हाथ रखकर बस रो दिया- पूछा जो मैंने दर्दे मुहब्बत से ‘मीर’ को, कोई होशियार हकीम या कुशल कविराज समझा सके तो हमें समझा दे कि आखिर यह सीने की आग है क्या बला! शायद ही कोई ठीक ठीक समझा सके। हमें तो आशा नहीं। कबीरदासजी तो इन वैद्य हकीमों से बिल्कुल निराश हैं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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