प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 98

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम व्याधि

‘कबिरा’ बैद बुलाइया, पकरिकै देखी बाहँ।
बैद न वेदन जानई, करक करेजे माहँ।।

रोगी को देखने के लिए वैद्य बुलाया गया। उसने आकर नाड़ी देखी। रोग के लक्षण मिलाये। पर वह बेचारा किसी सुलझे हुए नतीजे पर पहुँच न सका। रोग का जब वह निदान ही निश्चित न कर सका, तब उपचार क्या पत्थर करता! कलेजे की कड़क का क्या निदान होना चाहिए, यह उसकी बुद्धि से बाहर की बात थी। करते ही क्या, अपना सा मुँह लिये वैद्यराज महोदय वहाँ से चल दिये।

क्यों वे लोग बार बार रोगी को तंग करते हैं? उसकी व्यथा जानकर वे क्या करेंगे? व्यर्थ ही वे मूर्ख उसकी व्यथा के बारे में पूछ रहे हैं-

बावरे हैं ब्रज के सिगरे, मोहि नाहक पूछत कौन व्यथा है।
यह भी भला कोई बात है! अरे-
नहिं रोगी बताइहै रोगहिं जो, सखी, बापुरो बैद कहा करिहै? - हरिश्चंद्र

पूछने का यही कारण है कि रोग का ठीक ठीक पता चल जाय और तब उसका कुछ इलाज किया जाय। यह खूब रही। इलाज तभी न किया जाएगा, जब वह अपने रोग का इलाज करना चाहेगा। दवा से तो वह कोसों दूर भागता है। कहता है-

तेरे इश्क ने दिल मे जो दर्द दिया,
तो कुछ उससे मजा मैंने ऐसा लिया;
न करूँ, न करूँ, न करूँ, मैं दवा,
मैंने खाई है अब तो दवा की कसम। - नजीर

लो; करो इलाज. जिसने दवा न लेने की कसम खा ली है, उसका क्या इलाज करोगे? दूसरे यह इलाज कुछ काम भी तो न देगा। यह जानते हो या नहीं कि-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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