प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों की अभिलाषाएँहाँ, सच, तो कहते हैं- आँखें जो खुल रही हैं मरने के बाद मेरी, हाँ, एक यही हसरत थी सी यह भी दिल से न निकल सकी, दिल की दिलही में रहने इसी से ये हसरत भरी आँखें खुल रही हैं। सच मानो प्यारे जीवितेश्वर! बना, प्रान प्यारे! भये दरस तुम्हारे हाय, देखना है, तुम कभी मेरी कोई अभिलाषा पूरी करते हो या नहीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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