प्रेम योग -वियोगी हरि
विश्व प्रेमअपने प्रियतम को यदि तुम सरसे पैर तक, सिख से नख तक, विश्व व्याप्ति के भाव स एक बार भी देख लो तो जर्रे जर्रे अणु अणु में तुम्हें अखिल ब्रह्माण्ड नायक परब्रह्म का दर्शन हो जाय। मीर की यह दृढ़ धारणा है- सरा पा में उसके नजर करके तुम, नजर में वह प्यारा एक बार समा भर जाय, फिर तो वही वही जहाँ तहाँ दिखलायी देगा- समाया है जब से तू नजर में मेरी, जब चराचर में, घट घट में, मेरा ही प्यारा राम रम रहा है, तब इस विश्व ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु से मैं क्यों न प्रेम करूँ? अरे, जितने यहाँ रूप हैं, सब उसी हृदय रमण के तो विविध रूप हैं, और जितने यहाँ रंग हैं, सब उसी प्यारे रंगीले के जुदे जुदे रंग हैं। उस प्यारे के प्यार से ही यह विश्व इतना प्यारा लग रहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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