प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासयशोदा को तुरंत एक सूझ उठ आयी। बोली ‘भैया! ठीक तो कहती हूँ, दूध पीने से ही तो चोटी बढ़ेगी। पर कौन दूध? कजली गैया का। सो तू उसका दूध कब पीता है। आज से, कन्हैया, तू उसी गैया का दूध पिया कर’- जिद्दी लड़के का मन और कैसे बहलाया जाय। कन्हैया सचमुच बड़ा हठी है- मेरो, माई! ऐसो हठी बाल गोविंदा। आज, लो बलदाऊ की कुशल नहीं है। बालगोविन्द ने उन पर मैया के इजलास खास में मान हानि का दावा दायर कर दिया है। कन्हैया छोटा है; तो क्या हुआ। छोटा हो या बड़ा, लगने वाली बात सबको लग जाती है। दाऊ को ऐसा न कहना चाहिए। बड़े आये कहीं के दाऊ। कहते हैं कि कन्हैया, तू यशोदा का जाया हुआ पूत थोड़े ही है, तू तो मोल का लिया हुआ है। कभी माँ का नाम पूछते हैं, तो कभी बाप का! आप यह भी कहते हैं कि गोरे मा-बाप का लड़का भी गोरा ही होता है। तू तो काला कलूटा है, कृष्ण! मैया, अब दाऊ के साथ खेलने को जी नहीं चाहता। उन्होंने लड़कों को भी यही सिखा पढ़ा दिया है। वे भी सब चुटकी दे देकर मेरी ओर हँसा करते हैं। यशोदा से बालकृष्ण ने ताना देकर कहा, अरी मैया! दाऊ को तू क्यों मारेगी! मारना पीटना तो मुझ गरीब को ही तू जानती है। कुटना पिटना मेरे ही भाग्य में लिखा है। दाऊजी तो खिझाते ही हैं, ले तू भी मुझे खिल ले- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज