प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 254

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

यशोदा को तुरंत एक सूझ उठ आयी। बोली ‘भैया! ठीक तो कहती हूँ, दूध पीने से ही तो चोटी बढ़ेगी। पर कौन दूध? कजली गैया का। सो तू उसका दूध कब पीता है। आज से, कन्हैया, तू उसी गैया का दूध पिया कर’-

कजरी को पय! पिअहु लाल, तब चोटी बाढ़ै।

जिद्दी लड़के का मन और कैसे बहलाया जाय। कन्हैया सचमुच बड़ा हठी है-

मेरो, माई! ऐसो हठी बाल गोविंदा।
अपने कर गहि गगन बतावत खिलेन को माँगै चंदा।।
बोलो, अब चंदा कैसा मँगा दूँ उसे।

आज, लो बलदाऊ की कुशल नहीं है। बालगोविन्द ने उन पर मैया के इजलास खास में मान हानि का दावा दायर कर दिया है। कन्हैया छोटा है; तो क्या हुआ। छोटा हो या बड़ा, लगने वाली बात सबको लग जाती है। दाऊ को ऐसा न कहना चाहिए। बड़े आये कहीं के दाऊ। कहते हैं कि कन्हैया, तू यशोदा का जाया हुआ पूत थोड़े ही है, तू तो मोल का लिया हुआ है। कभी माँ का नाम पूछते हैं, तो कभी बाप का! आप यह भी कहते हैं कि गोरे मा-बाप का लड़का भी गोरा ही होता है। तू तो काला कलूटा है, कृष्ण! मैया, अब दाऊ के साथ खेलने को जी नहीं चाहता। उन्होंने लड़कों को भी यही सिखा पढ़ा दिया है। वे भी सब चुटकी दे देकर मेरी ओर हँसा करते हैं। यशोदा से बालकृष्ण ने ताना देकर कहा, अरी मैया! दाऊ को तू क्यों मारेगी! मारना पीटना तो मुझ गरीब को ही तू जानती है। कुटना पिटना मेरे ही भाग्य में लिखा है। दाऊजी तो खिझाते ही हैं, ले तू भी मुझे खिल ले-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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