प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्यआज प्रथम बार बलराम के साथ बालकृष्ण गायें चराने जा रहे हैं! माता यशोदा बलदाऊ के साथ नन्हे से कृष्ण को भेज तो रहीं हैं, पर हृदय में फिर भी शंकाएँ उठ रही हैं। दोनों भाई अभी बच्चे ही तो हैं। इसलिए आप गो चारण संबंधी शिक्षा स्नेहपूर्वक दोनों को देने लगीं- तनक तनक बछरनकों लैकैं तनक दूरि तुम जइयो। देखो, भैया बलराम, अपने छोटे भाई का, सयाने की नाईं, खूब ध्यान रखना- साथ लिये रहियो मेरे कों, तुम हौ तनक सयाने। अस्तु, माता की शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर सयाने दाऊ अपने बारे भोरे भाई को गायें चराने वन को ले गये। साँझ होते ही यशोदा कृष्ण के लिए अधीर हो उठी। आज अब तक वन से लड़के नहीं लौटे! कब कृष्ण बलराम आयें; और कब उन्हें छाती से लगाकर अपनी आँखें ठंडी करूँ- कबधों तेल फुलेल चुपरिकै, लाँबी चुटिया ओंछौ। इस पद्य में कवि ने मातृ हृदय की स्वाभाविक स्नेहमयी कितनी ऊँची उत्कण्ठा व्यक्त की है! कृष्ण बलराम को छाती से लिपटा लेने के लिए यशोदा कैसी अधीर हो रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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