प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदाससुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत। पर वास्तवव में यह बात थी नहीं। बलभद्र को उदारहृदया यशोदा अपने सुतसे भी अधिक प्रेम करती थीं। बलराम ने स्वयं गद्गद कण्ठ से एक बार यशोदा मैया के वात्सल्य स्नेह का इस भाँति परिचय दिया था- एक दिवस हरि खेलत मोसों झगरो कीनों पेकि। अपने दाऊ को कृष्ण भी बहुत चाहते थे। शिकायत तो यों ही कभी कभी कर दिया करते थे। अपने छोटे प्यारे भैया पर दाऊ का भी तो असीम स्नेह था। गायें खुद आप चराते और लाड़ले कृष्ण को वन के फल तोड़ तोड़कर खिलाया करते। कृष्ण पर बलराम का जो स्नेह था, उसे कृष्ण का ही हृदय जानता था- मैया री, मोहि दाऊ टेरत। किसी ने क्या इस बात का कभी अनुसंधान किया है कि माता का हृदय विधाता ने किन स्वर्गीय उपादानों और दिव्य वृत्तियों को लेकर निर्मित किया है? स्नेहु का वह कैसा विस्तीर्ण पयोनिधि है! कह नहीं सकते कि उस दिव्य महासागर में कितने अमूल्य भाव रत्न पड़े हुए हैं। फिर यशोदा सी माता और कृष्ण सा पुत्र! इस वात्सल्यवारिधि की थाह कौन ला सकेगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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