प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 256

प्रेम योग -वियोगी हरि

Prev.png

वात्सल्य और सूरदास

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।
सूरस्याम, मोहि गोधन की सौं, हौं जननी तू पूत।।

पर वास्तवव में यह बात थी नहीं। बलभद्र को उदारहृदया यशोदा अपने सुतसे भी अधिक प्रेम करती थीं। बलराम ने स्वयं गद्गद कण्ठ से एक बार यशोदा मैया के वात्सल्य स्नेह का इस भाँति परिचय दिया था-

एक दिवस हरि खेलत मोसों झगरो कीनों पेकि।
मोकों दौरि गोद करि लीनों, इनहिं दियो करि ठेलि।।

अपने दाऊ को कृष्ण भी बहुत चाहते थे। शिकायत तो यों ही कभी कभी कर दिया करते थे। अपने छोटे प्यारे भैया पर दाऊ का भी तो असीम स्नेह था। गायें खुद आप चराते और लाड़ले कृष्ण को वन के फल तोड़ तोड़कर खिलाया करते। कृष्ण पर बलराम का जो स्नेह था, उसे कृष्ण का ही हृदय जानता था-

मैया री, मोहि दाऊ टेरत।
मोकौं बन फल तोरि देतु है, आपुन गैयन धेरत।।

किसी ने क्या इस बात का कभी अनुसंधान किया है कि माता का हृदय विधाता ने किन स्वर्गीय उपादानों और दिव्य वृत्तियों को लेकर निर्मित किया है? स्नेहु का वह कैसा विस्तीर्ण पयोनिधि है! कह नहीं सकते कि उस दिव्य महासागर में कितने अमूल्य भाव रत्न पड़े हुए हैं। फिर यशोदा सी माता और कृष्ण सा पुत्र! इस वात्सल्यवारिधि की थाह कौन ला सकेगा?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः