प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 257

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

यशोदा का हृदय स्वभाव से ही अत्यंत स्निग्ध और कोमल है। प्यारा कन्हैया कबसे खेलने गया है, ऐं! अब तक नहीं लौटा! साथ में आज उसका दाऊ भी नहीं है। गाँव के लड़के उस छोटे से कान्ह को दौड़ा दौड़ाकर थका डालेंगे। उन ऊधमी लड़कों के साथ वह भोलाभाला नन्हा सा कृष्ण खेलना क्या जाने? कहीं गिर न पड़ा हो, किसी ने मार पीट न कर दी हो, या कोई कहीं फुसलाकर न ले गया हो। बलराम भी नहीं देख पड़ता। किसे भेजूँ, क्या करूँ? न जाने आज किसने मेरे लाल को बहका लिया-

खेलनकों मेरो दूर गयौ।
संग संग कहँ धावत ह्वैहै, बहुत अबेर भयौ।।

खैर, कहीं से खेलता कूदता यशोदा का हृदय दुलारा गोपाल आ गया। मातृ स्नेह की नदी उमड़ आयी। दौड़कर लाल को गोद में उठा लिया। बार बार मोहन का मुँह चूमने लगो। भैया, आज कहाँ खेलने चले गये थे? तबके गये, मेरे लाल, अब आये! ये सब ग्वाल बाल, न जाने, तुम्हे कहाँ कहाँ दौड़ाते फिरे होंगे। सुना है कि आज वन में एक ‘हाऊ’ आया है। तुम तो, भैया, नन्हे से हो, कुछ जानते समझते तो हो नहीं। लो, अपने इस सखा से ही पूछ लो कि वह कैसा हाऊ है-

खेलन दूर जात कित कान्हा?
आजु सुन्यो, बन हाऊ आयौ, तुम नहि जानत नान्हा।।
यह लरिका अबहीं भजि आयौ, लेहु पूछि किन ताहि।
कान काटि वह लेतु सबनिके, लरिका जानत जाहि।।

मैं यों ही बक रही हूँ? कुछ सुनते ही नहीं! फिर वही ऊधम! क्यों, न मानोगे? अब रात को कहाँ चले? मेरा प्यारा बच्चा! साँझ हो गयी है, अब अँधेरे में दौड़ना अच्छा नहीं। देखो, मान जाओ, बच्चा! क्या खेलने को फिर सबेरा न होगा-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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