प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 258

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

साँ भई, घर आवहु प्यारे!
दौरत कहाँ, चोट लगिहै कहुँ, फेरि खेलियो होत सकारे।।

हलधर! तुम्हारा भाई कैसा ढीठ होता जाता है। किसी की सुनता तक नहीं। कितना ही रोको, मानता ही नहीं। अब तुम्हीं बुलाओ। तुम्हारे ही बुलाने से आयेगा। मैं भी देखूँ, तुम दोनों कैसे खेलते हो। मेरे राजा बेटा, आओ, दोनों भाई मेरी आँखों के ही सामने कुछ देर यहीं खेलो। क्यों, आँखमिचौनी खेलोगे? अच्छी बात है, वही खेलो-

बोलि लेहु हलधर मैयाकों।
मेरे आगे खेल कौर कछु, नैननि सुख दीजै मैयाकों।।
हलधर कह्यौ, आँख को मूँदै? हरि कह्यौ जननि जसोदा।
सूरस्याम, लै जननि खेलावति हरषसहित मनमोदा।।

सखी! आज अपने यहाँ नन्द नन्दन माखन चोरी करने आये हैं। हम सबका आज अहोभाग्य! देखो, कैसी चतुराई से आप माखन ले लेकर खा रहे हैं। श्रीदामा के कंधे पर चढ़कर दही की मटकी भी आपने धीरे से सींके पर से उतार ली है। श्यामसुंदर की यह छबि देखते ही बनती है, सखी! धीरे धीरे बात करो। कहीं गोपालाल सुन लें और पकड़ जाने के डर से भाग जायँ। अरी! ऐसे हृदय हारी चोरको कहीं घर से भगाना होता है! हे भगवन्! नित्य ही यह प्यारा चोर हमारे घर माखन चुराने आया करे, और इस नवनीत प्रिय की यह अनुपम शोभा निहार निहारकर हम अपनी आँखें सिराया करें-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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