प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासगोपालहि माखन खान दै। अरी, यह छबि बार बार देखने को तो मिलेगी नहीं। ओट में हो, सखी, जी भरकर देख क्यों नहीं लेती, अहा! गोपाल दुरे हैं माखन खात। उस दिन खूब दही माखन चुराया और खाया गया। फिर तो घर घर यही लीला होने लगी। आज एक घर में चोरी हुई, तो कल किसी दूसरे में। अब तो यशोदा रानी के पास नित्य नये उलाहने भी पहुँचने लगे। पर उन्हें इन चोरियों पर विश्वास न हुआ। पाँच साढ़े पाँच वर्ष का बालक कहीं चोरी कर सकता है? यह सब बनायी हुई बातें हैं। कृष्ण की माखन चोरी पर, लो, कैसे विश्वास किया जाय। मेरो गोपाल तनिकसो, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज