प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 260

प्रेम योग -वियोगी हरि

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वात्सल्य और सूरदास

ठीक है नन्द रानी! ऐसा ही कहोगी! पर यह तो तुम जानती हो कि जिसे चोरी की चाट लग जाती है उसे फिर घर के हीरे मोती भी नहीं भाते? तुम्हारा यह पाँच वर्ष का तनिक सा गोपाल बड़ा नटखट है। हमें तो तुमसे न्याय की आशा थी। क्या यही तुम्हारा न्याय है? तुम सरासर अपने लाल का पक्ष ले रही हो। यही बात रही, तो फिर हम सब तुम्हारा गाँव छोड़कर किसी दूसरे गाँव में जा बसेंगी। क्या तुम्हारी ही छत्र छाया में सारा सुख है?

यशोदा से अब तो सहन न हो सका। क्रोध आ ही गया। हाथ पकड़कर कृष्ण से पूछने लगीं- इस ग्वालिनी का दही माखन क्या तूने चुराकर खाया है? अरे, अपने घर में क्या कुछ कमी थी, रे? सच- सच बोल, नहीं तो मारे थप्पड़ो के तेरे गाल लाल कर दूँगी। उलाहने कहाँ तक सुनूँ। एक न एक गूजरी नित्य उलाहना लिए आँगन में खड़ी रहती है।

इस पर, अब, पाँच वर्ष के बालक का जवाब सुनिये-

मैया मेरी, मैं नाहीं दधि खायौ।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायौ।।
देखि तुही, छींके पर भाजन ऊँचे घर लटकायौ।
तुही निरखि, नान्हे कर अपने, मैं कैसे दधि पायौ।।
इसे कहते हैं चोर चातुर्य!
मुख दधि पोंछि कहत नँद नंदन, दौना पीठि दुरायौ।

तोतली वाणी में दिया हुआ यह विदग्धता पूर्ण उत्तर काम कर गया। यशोदा का क्रोध से भरा हृदय करुणार्द्र हो गया। उलाहना लाने वाली गोपियों की भी आँखें स्नेह से डबडबा आयीं। इतने में गोपाल ने ताली देकर हँस दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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