प्रेम योग -वियोगी हरि
वात्सल्य और सूरदासबस, फिर क्या- डारि साँटि, मुसुकाय तबै गहि सुतकों कंठ लगायौ।। एक दिन उस माखन चोर पर बुरी बीती। ऊधम की भी कोई हद होती है। लो, आज उस हठीले गोपाल ने सारा दही लुढ़का दिया, मथानी की रस्सी तोड़ दी, छाछ का मटका फोड़ डाला और माखन भी सब जूठा कर दिया। यशोदा बेचारी कहाँ तक गम खाय। इतनी सब शैतानी करके आप मैया को बिराते हुए लम्बे भी हो गये। भागे तो बहुत, पर किसी तरह पकड़ में आ गये। फिर क्या, बड़ी मार पड़ी। और ऊखल से बाँध भी दिये गये। थप्पड़ों से गाल लाल हो गये, और कान भी उमेठे गये। बहुत रोये, बहुत चिल्लाये, पर माता को नेक भी दया न आयी। जो नित्य उलाहना देने आती थीं, वे ही गोपियाँ आज यशोदा से कह रही हैं- यशोदा, तेरो भलो हियो है माई! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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