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कृष्णांक
श्रीकृष्ण के सार्वभौम उपदेश का दिग्दर्शन
जो उपदेश सर्व देश, काल और अवस्था में मनुष्य मात्र के लिये अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति कराने वाला हो, वही सार्वभौम कहलाने योग्य है। भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से ऐसे उपदेश अनेक बार और अनेक समय दिये गये हैं, उन सबका उल्लेख तो यहाँ असम्भव है। अत: उन्होंने अपने परम भक्त तथा मित्र अर्जुन और उद्धवजी के प्रति जो उपदेश दिेये है, उन्हीं में से कुछ यहाँ दिखाये जाते हैं भगवान अर्जुन के प्रति श्रीमद्भगवद्गीता में उपदेश करते हैं – 1. विषय-चिन्तन ही अनर्थों का कारण है- विषयों का निरन्तर ध्यान करने पुरुष की विषयों में आसक्ति होती है। आसक्ति से उन विषयों की प्राप्ति के लिये कामना होती है। कामना का प्रतिरोध होने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मोह होता है। मोह से स्मृति-भ्रम हो जाता है। स्मृति-भ्रम से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश से सर्वथा विनाश को प्राप्त होना पड़ता है। 2. कामना का त्याग ही शान्ति का हेतु है – जो पुरुष समस्त कामनाओं को त्यागकर, इच्छा रहित होकर विचरता है, वह ममता और अहंकार रहित पुरुष शान्ति को प्राप्त होता है। 3. संसार में कृतकृत्य कौन है ? जो केवल आत्मा में ही रमणशील है, आत्मा में ही तृप्त है और जो आत्मा में ही संतुष्ट है, ऐसे पुरुष का कोई भी कर्तव्य शेष नहीं रहता, वह कृतकृत्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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