श्रीकृष्णांक
श्रीमद्भागवत में श्रीराधाजी
श्रीमद्भागवत में श्रीराधा का नाम नहीं आया। भगवान श्रीकृष्ण की व्रज-लीला में जिनका बराबर साथ रहना बतलाया जाता है, जिनके हृदय में भगवान निरन्तर वास करते रहे, उन श्रीराधा का नाम श्रीकृष्ण-चरित्र में न हो, यह बड़ी विचित्र बात है। पर भक्तों को यह जानकर सन्तोष होगा कि श्रीराधा का नाम भागवत में कहीं नहीं हो, ऐसी बात नहीं है। उनका नाम आया है, ध्यानपूर्वक देखने से मालूम हो जायगा। देखिये, श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध, चतुर्थ अध्याय का 14वाँ श्लोक- नमो नमस्तेअस्त्वृषभाय सात्त्वतां । सात्वत भक्तों के पालक, कुयोगियों के लिये दुज्र्ञेय प्रभु को हम नमस्कार करते हैं। अहा ! वे भगवान कैसे हैं ? ‘स्वधामनि’ वृन्दावन में, ‘राधसा’ श्रीराधा के साथ, ‘रंस्यते’ क्रीड़ा करने वाले हैं। और राधा कैसी हैं ? जिन्होंने समानता और आधिक्य को निरस्त बराबरी करने वाला भी कोई नहीं है- ‘राध्’ धातु से राधा शब्द बनता है और इसी प्रकार सान्त ‘राधस्’ शब्द भी ‘राध्’ धातु से ही बनता है। पुराण का यह वाक्य प्रसिद्ध ही है- काचिद्देवताभ्यधिका कुत: अनेककोटिब्रह्माण्डपतिर्यस्या वशो हरि: । अनेक करोड़ ब्रह्माण्डों के पति श्रीकृष्ण तक जिनके वश में हैं, उन राधा से बढ़कर या उनके समान कौन-सा देवता है ? मो कहँ अस मन-मन्दिर भावै । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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