श्रीकृष्णांक
श्रीरासलीला का रहस्य
आजकल के पढ़े-लिखे महानुभावों में ऐसे बहुतेरे लोग हैं जो भगवान की ’रासलीला का वास्तविक रहस्य क्या है?’ इसको भलीभाँति नहीं समझकर उसकी बड़ी बेतुकी आलोचना किया करते हैं। इसी से वे विपरीत भावनाओं के फंदे में फँस जाते हैं। रासलीला का रहस्य जानना मनुष्य-बुद्धि के अगोचर है। जिस रासलीला के रहस्य को इन्द्र, चन्द्र, ब्रह्मादि देवगण भी हृदयगम नहीं कर सके, श्रीमहादेवजी ने भी जिस लीला के रहस्य को न समझकर स्वयं गोपीभाव को स्वीकार किया, इसी से उनका एक नाम गोपीश्वर महादेव हुआ, उस लीला का रहस्य लिखने के लिये मुझ-जैसे व्यक्ति का लेखनी उठाना धृष्टता मात्र है। इसीलिये मैं अपनी ओर से कुछ भी न कहकर यहाँ उन्हीं बातों को लिखना चाहता हूँ जो गुरुजन और भक्तजनों से मैंने सुनी है। वास्तव में रासलीला के रहस्य को भाग्यवती व्रज की गोपियाँ या गोपीभाव के भावुक लोग ही समझते हैं। सबसे प्रथम रास के लक्षण पर विचार करना उचित है। सर्वशक्तिमान परिपूर्ण परतत्त्व की पराख्या-शक्ति के साथ अनादि सिद्ध रिरंसा की जो उत्कण्ठा है और उस उत्कण्ठा के साथ जो चिद्विलास है उसी को ’रास’ कहते हैं। इस लीला में अपूर्व नृत्य, गीत, आलिंगन आदि भावों का विशेष परिचय विद्यमान है। श्रीधर स्वामिजी ने इसी बात की पुष्टि में लिखा है। 'रासो नाम बहुनर्त्तकीयुक्तो नृत्यविशेष:' बहुनत की गणों के नृत्य विशेष का नाम ’रास’ है। पूज्य श्रीजीव गोस्वामीजी ने भी लिखा है- नटैर्गृहीतकण्ठीनां अन्योन्यात्तरकश्रियाम् । इसका तात्पर्य यह है कि नट लोग नत्र्त की- युग्म समूहों के कण्ठ में हाथ धरकर नत्र्त की गणों के साथ मण्डलाकार से जो नृत्य करते हैं उसको रास कहते हैं। एक ही श्रीकृष्ण भगवान ने प्रकाश मूर्ति से अनेक होकर शतकोटि गोपीयों के साथ रासलीला की थी। इसका श्रीभागवत में वर्णन है- रासोत्सव: संप्रवृत्तो गोपीमण्डलमण्डित: । दो-दो गोपियों के मध्य में एक-एक श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव था। प्रत्येक गोपिका श्रीकृष्ण को अपने समीप में स्थित जानती थी। उस समय सबने मण्डलाकार होकर नृत्य किया था। इस रासलीला में दो रहस्य हैं- अन्तरंग और बहिरंग। प्रथम रहस्य का अभिप्राय आनन्दरस का आस्वादन कराना है और दूसरे का अभिप्राय काम को पराजित करना है। विश्व ब्रह्माण्ड में श्रीकृष्ण के सिवा और किसी ने भी काम को पराजित नहीं किया। इन्द्र समस्त देवताओं के अधिपति थे, किन्तु वे काम को नहीं जीत सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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