श्रीकृष्णांक
मोक्ष-संन्यासिनी गोपियां
काम्योपासनयार्थयन्त्यनुदिनं किंचित्फलं सेप्सितम्, - श्रीशंकराचार्य
कुछ लोग प्रतिदिन सकामोपासना कर मनवांछित फल चाहते हैं, दूसरे कुछ लोग यज्ञादि के द्वारा स्वर्ग की तथा (कर्म और ज्ञान) योग आदि के द्वारा मुक्ति के लिये प्रार्थना करते है, परन्तु हमें तो यदुनन्दन श्रीकृष्ण के चरण युगलों के ध्यान में ही सावधानी के साथ लगे रहने की इच्छा है। हमें उत्तम लोक से, दम से, राजा से, स्वर्ग से और मोक्ष से क्या प्रयोजन ?’
सच्चिदानन्दघन परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण की वृन्दावन लीला अति मधुर है, आकर्षक है, अद्भुत है और अनिर्वचनीय है। वहाँ सभी कुछ विचित्र है, चराचर सभी प्राणी श्रीकृष्ण प्रेम में निमग्न हैं, इनमें भी गोपी-प्रेम तो सर्वथा अलौकिक और अचिन्त्य है। वहाँ वाणी की गति ही नहीं है, मन भी उस प्रेम की कल्पना नहीं कर सकता। करे भी कैसे, उसकी वहाँ तक पहुँच ही नहीं है। मनुष्य प्रेम की कितनी ही ऊँची-ऊँची कल्पना क्यों न करे, वह उस कल्पनातीत भगवत-प्रेम के एक कण के बराबर भी नहीं है। उस गुणातीत अप्राकृत ‘केवल प्रेम की’ कल्पना गुणों से निर्मित प्राकृत मन कर ही कैसे सकता है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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