श्रीकृष्णांक
जन्म कर्म च मे दिव्यम
अग्नितत्त्व कारणरूप र्से अर्थात परमाणुरूप से निराकार है और लोक में समभाव से सभी जगह अप्रकटरूपेण व्याप्त है। लकडियों के मथने से, चकमक-पत्थर से और दियासलाई की रगड़ से अथवा अन्य साधनो द्वारा चेष्टा करने से वह एक जगह अथवा एक ही समय कई जगह प्रकट हो सकती है; और जिस स्थान में प्रकट अग्नि प्रकट होती है उस स्थान में अपनी पूर्ण शक्ति से प्रकट होती है। अग्नि की छोटी-सी शिखा को देखकर कोई यह कहे कि यहाँ अग्नि पूर्णरूप से प्रकट नहीं है तो यह उसकी भूल है। जहाँ पर भी अग्नि प्रकट होती है वह अपनी दाहक तथा प्रकायाक शक्ति को पूर्णतया साथ रखती हुई ही प्रकट होती है और आवश्यक होने पर वह जोर से प्रज्वलित होकर सारे ब्रह्माण्ड को भस्म करने में समर्थ हो सकती है। इस तरह पूर्ण शक्ति सम्पन्न होकर एक जगह या एक ही समय अनेक जगह एकदेशीय साकार रूप में सर्वत्र व्याप्त भी रहती है। इसी प्रकार निराकार सर्वव्यापी विज्ञानानन्दघन अक्रियरूप परमात्मा अप्रकट रूप से सब जगह व्याप्त होते हुए भी सम्पूर्ण गुणों से सम्पन्न अपने पूर्ण प्रभाव के सहित एक जगह अथवा एक ही काल में अनेक जगह प्रकअ हो सकते हैं; इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है ? इस प्रकार भगवान का प्रकट होना तो सर्व प्रकार से युक्ति-संगत है। कोई-कोई पुरुष यह शंका करते हैं कि भगवान सर्वशक्तिमान् हैं, वे अपने संकल्पमात्र से ही रावण और कंस आदि को दंड दे सकते थे, फिर उन्हें श्रीराम और श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेने की क्या आवश्यकता थी? यह शंका भी सर्वथा अयुक्त है। ईश्वर के कर्तव्य के विषय में इस प्रकार की शंका करने का मनुष्य को कोई अधिकार नहीं है। तथापि जिनका चित्त अज्ञान से मोहित है उनके मन में ऐसी शंका हो जाया करती है। भगवान के अवतरण में बहुत से कारण हो सकते हैं, जिनको वस्तुतः वे ही जानते हैं। फिर भी अपनी साधारण बुद्धि के अनुसार कई कारणों में से एक यह भी कारण समझ में आता है कि वे संसार में जीवों पर दया करके सगुणरूप में प्रकअ होकर एक ऊँचा आदर्श रख जाते हैं- संसार को ऐसा सुलभ और सुखकर मुक्ति-मार्ग बतला जाते हैं जिससे वर्तमान एवं भावी संसार के असंख्य जीव परमेश्वर के उपदेश और आचरण को लक्ष्य में रखकर उनका अनुकरण कर कृतार्थ होते रहते हैं। भगवान के जन्म और विग्रह दिव्य होते हैं, यह बडे़ ही रहस्य का विषय है। भगवान का जन्म साधारण मनुष्यों की भाँति नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण जब कारागर में वसुदेव-देवकी के सामने पकट हुए, उस समय का श्रीमद्भागवत का प्रसंग देखने और विचारने से मनुष्य समझ सकता है कि उनका जन्म साधारण मनुष्यों की भाँति नहीं हुआ। अव्यक्त सच्चिदानन्दन परमात्मा अपनी लीला से ही शंख, चक्र, गदा, पद्म सहित विष्णु के रूप में वहाँ प्रकट हुए। उनका प्रकट होना और पुनः अन्तर्धान होना उनकी स्वतन्त्र लीला है, वह हम लोगों के उत्पत्ति-विनाश की तरह नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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