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राग सारंग
(प्रभो!) भक्तों के मंगल के लिये आपने क्या नहीं किया? परीक्षित् की गर्भ में ही रक्षा की, अम्बरीष का व्रत रखा, भक्त प्रह्लाद की प्रतिज्ञा पूर्ण की, अपने मित्र ब्राह्मण सुदामा की दरिद्रता दूर की, द्रौपदी का वस्त्र खींचा जा रहा था, तब उसकी लाज बचायी, ब्रह्मा और इन्द्र का गर्व दूर किया, पाण्डवों का दूतत्त्व किया, उग्रसेन को राज्य दिया, भीष्म की प्रतिज्ञा पूर्ण की, अर्जुन के सारथि बने, कुबेर के (यमुलार्जुन बने) पुत्रों को दुखी जानकर देवर्षि नारद का शाप छुड़ाया, ग्राह से पकड़े जाने के कारण बलहीन हुए गजराज को दुष्ट ग्राह से छुड़ाकर वैकुण्ठधाम भेज दिया, हे देव! तुमने ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या का उद्धार किया, (व्रज में) दावानल का पान किया। सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी श्रीहरि भक्तवत्सल हैं, वे तो बलि के द्वारपर (सुतललोक में) द्वारपाल तक बन गये हैं।
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