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- इलाहाबाद
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- इष्टाकृत
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- इष्टिकर्म
- इष्मीकास्त्र
- इस प्रकार जो काम-राग वर्जित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- इसके अधरों पर छा जाये -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- इससे ऊँची भक्ति-’कामना’ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- इसी भाँति तुम निस्चै ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- इसीलिये मैं सदा चाहता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- इस्कॉन मंदिर वृन्दावन
- इस्कॉन मन्दिर वृन्दावन
- इहँइ रहौ तौ बदौं कन्हाई -सूरदास
- इहाँ कपिल सौ माता कह्यौ -सूरदास
- इहि अंतर वृषभासुर आयौ -सूरदास
- इहि उर माखन चोर गड़े -सूरदास
- इहि तेरै वृंदाबन बाग -सूरदास
- इहि बन मोर नहीं ए कामबान -सूरदास
- इहि बिधि वेद-मारग सुनौ -सूरदास
- इहि विधि कहा घटैगौ तेरौ -सूरदास
- इहिं अंतर तिहिं खोरिही नँदनंदन आए -सूरदास
- इहिं अंतर तिहिं खोरिहीं नँदनंदन आए -सूरदास
- इहिं अंतर भिनुसार भयौ -सूरदास
- इहिं अंतर मधुकर इक आयौ -सूरदास
- इहिं अंतर हरि आइ गए -सूरदास
- इहिं डर बहुरि न गोकुल आए -सूरदास
- इहिं तेरैं वृंदाबन बाग -सूरदास
- इहिं दुख तन तरफत मरि जैहै -सूरदास
- इहिं बँसुरी सखि सबै चुरायौ -सूरदास
- इहिं बन मोर नहीं ये -सूरदास
- इहिं बिधि पावस सदा हमारै -सूरदास
- इहिं बिधि वेद-मारग सुनौ -सूरदास
- इहिं बिरियाँ बन तै ब्रज आवत -सूरदास
- इहिं बिरियाँ बन तैं ब्रज आवत -सूरदास
- इहिं ब्रज सरगुन दीप प्रकास्यौ -सूरदास
- इहिं मुरली कछु भलौ न कीनौ -सूरदास
- इहिं मुरली मन हरयौ हमारौ -सूरदास
- इहिं राजस को को न बिगोयौ -सूरदास
- इहिं विधि बन बसे रघुराइ -सूरदास
- इहै सोच अक्रूर परयौ -सूरदास
- ईजिक
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- ईश
- ईश-विरोधी धर्म-विरोधी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
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- उग्रसेन कौं दियौ हरि राज -सूरदास
- उग्रसेन राजा
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- उग्रायुध (नीप के पुत्र)
- उग्रायुध (बहुविकल्पी)
- उग्रायुध (योद्धा)
- उघटत स्याम नृत्यतिं नारि -सूरदास
- उघरि आए कान्ह कपट की खानि -सूरदास
- उघरि आयौ परदेसी -सूरदास
- उघरि आयौ परदेसी कौ नेहु -सूरदास
- उच्चै:श्रवा
- उच्चैश्रवा
- उच्चैश्रवा (अविक्षित पुत्र)
- उच्चैश्रवा (बहुविकल्पी)
- उच्छिक
- उच्छृंग
- उज्जयंत गिरि
- उज्जयंत पर्वत
- उज्जयन
- उज्जयन्त गिरि
- उज्जयन्त पर्वत
- उज्जानक
- उज्जालक
- उज्जैन
- उज्ज्यन
- उठता नाच प्रेम-सागर तब -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उठि राधे कत रैनि गँवावै -सूरदास
- उठिये स्याम, कलेऊ कीजै -सूरदास
- उठी प्रातहीं राधिका -सूरदास
- उठीं सखी सब मंगल गाइ -सूरदास
- उठे कहि माधौ इतनी बात -सूरदास
- उठे नंद-लाल सुनत जननी -सूरदास
- उठो नँदलाल भयौ भिनुसार -सूरदास
- उड़ता नहीं निरा भ्रम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उड़ा जा रहा प्रकृति पर रथ-विमान आकाश -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उडुपति सौ बिनवति मृग नयनी -सूरदास
- उडुपी
- उडुपी कृष्ण मंदिर
- उड्र केरल
- उत तै पठावत वे -सूरदास
- उत तैं पठावत वे, इत तैं न मानत ये -सूरदास
- उत नंदहिं सपनौ भयौ -सूरदास
- उत वृषभानुसुता उठी -सूरदास
- उतकंठा हरि सौ बढ़ी 2 -सूरदास
- उतकंठा हरि सौ बढी़ 2 -सूरदास
- उतथ्य
- उतथ्य (ऋषि)
- उतथ्य (चन्द्रमा पुत्री)
- उतथ्य (बहुविकल्पी)
- उतथ्य का मान्धाता को उपदेश
- उतथ्य के उपदेश में धर्माचरण का महत्व
- उतमोजा
- उतारत हैं कंठनि तैं हार -सूरदास
- उती दूर तैं को -सूरदास
- उती हूर तै को आवै री -सूरदास
- उत्कच
- उत्कट काम, अमर्ष, चपलता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उत्कल
- उत्कोचक
- उत्क्राथिनी
- उत्क्रोश
- उत्तंक
- उत्तंक (गौतम शिष्य)
- उत्तंक (बहुविकल्पी)
- उत्तंक का कुण्डल लेकर पुन: सौदास के पास लौटना
- उत्तंक का कुण्डल हेतु रानी मदयन्ती के पास जाना
- उत्तंक का गुरुपुत्री के साथ विवाह
- उत्तंक का दिव्यकुण्डल लाने के लिए सौदास के पास जाना
- उत्तंक का बृहदश्व से धुन्धु वध का आग्रह
- उत्तंक का सर्पयज्ञ
- उत्तंक का सौदास से उनकी रानी के कुण्डल माँगना
- उत्तंक की गुरुभक्ति का वर्णन
- उत्तंक को पुन: कुण्डलों की प्राप्ति
- उत्तंक मुनि की कथा
- उत्तम
- उत्तम-अधम ब्राह्मणों के साथ राजा का बर्ताव
- उत्तम (बहुविकल्पी)
- उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन
- उत्तम और अधम ब्राह्मणों के लक्षण
- उत्तम जनपद
- उत्तम प्रायश्चित
- उत्तम ब्राह्मण की महिमा
- उत्तम ब्राह्मणों के सेवन का आदेश
- उत्तम सफल एकादसि आई -सूरदास
- उत्तम सफल एकादसि आई 1 -सूरदास
- उत्तम सफल एकादसि आई 2 -सूरदास
- उत्तम सफल एकादसि आई 3 -सूरदास
- उत्तमौजा
- उत्तर
- उत्तर-कुरु
- उत्तर (इरावती पिता)
- उत्तर (बहुविकल्पी)
- उत्तर (महाभारत संदर्भ)
- उत्तर कत न देत अलि नीच -सूरदास
- उत्तर का अपने लिए सारथि ढूँढने का प्रस्ताव
- उत्तर का अर्जुन के रथ को कृपाचार्य के पास लेना
- उत्तर का बृहन्नला से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र के विषय में प्रश्न करना
- उत्तर का शमीवृक्ष से पांडवों के दिव्य धनुष आदि उतारना
- उत्तर कुरु
- उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान का वर्णन
- उत्तर कोशल
- उत्तर कोसल
- उत्तर गीता
- उत्तर न देति मोहिं मोहिनी रही ह्वै मौन -सूरदास
- उत्तर पांचाल
- उत्तर पारियात्र
- उत्तर मानस
- उत्तर म्लेच्छ
- उत्तर हरिवर्ष
- उत्तरकुमार का नगर में प्रवेश और प्रजा द्वारा उनका स्वागत
- उत्तरफाल्गुनी (चन्द्र पत्नी)
- उत्तरभाद्रपदा (चन्द्र पत्नी)
- उत्तरा
- उत्तरा की श्रीकृष्ण से पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना
- उत्तरा के मृत बालक को जिलाने के लिए कुन्ती की श्रीकृष्ण से प्रार्थना
- उत्तराषाढा
- उत्तानपाद
- उत्तानबर्हि
- उत्तालतालभेत्ता (कृष्ण)
- उत्तेजनी
- उत्पलवन
- उत्पलावती नदी
- उत्पलावन
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- उत्सवसंकेत
- उत्सवसंकेत (जाति)
- उत्सवसंकेत (बहुविकल्पी)
- उत्सवसंकेत (म्लेच्छ जाति)
- उत्तर
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- उदपान तीर्थ
- उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा
- उदपारक
- उदय हुए जब श्रीवृन्दावन-चन्द्र -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उदय हो गये जैसे घर में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
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- उद्दालक आरुणि
- उद्दालक आरुणी
- उद्दालकि
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- उद्धव! तुम मुझको किसका यह -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उद्धव! मुझमें तनिक नहीं है -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उद्धव! राधा-सी अभागिनी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उद्धव! सत्य सुनाया तुमने -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उद्धव की ब्रजयात्रा
- उद्धव कुंड गोवर्धन
- उद्धव कुण्ड गोवर्धन
- उद्धव के प्रति -अर्जुनदास केडिया
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- उद्धव गोपी संवाद और भ्रमरगीत
- उद्धवजी ! हम समझ न पायीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उद्धवप्रीतिपूर्ण
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- उद्योग
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- उद्योगपर्व महाभारत
- उद्रपारक
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- उद्वह
- उधौ इतने मोहिं सतावत -सूरदास
- उधौ कहा करै लै पाती -सूरदास
- उधौ कहा कहत बिपरीत -सूरदास
- उधौ जोग तबहिं तै जान्यौ -सूरदास
- उधौ तुम ब्रज की दसा बिचारौ -सूरदास
- उधौ देखत हौ जैसे व्रजवासी -सूरदास
- उधौ देखौ यह ग़ति मोर -सूरदास
- उधौ बानी कौन ढरैगौ -सूरदास
- उधौ भलौ ज्ञान समुझायौ -सूरदास
- उधौ हमरी सौ तुम जाहु -सूरदास
- उन ब्रजदेव नैंकु चित करते -सूरदास
- उनके होकर हम दुःखी हों -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उनकौ ब्रज बसिबौ नहिं भावै -सूरदास
- उनकौ यह अपराध नही -सूरदास
- उनकौ यह अपराध नहीं -सूरदास
- उनमैं पाँचौ दिन जौ बसियै -सूरदास
- उनही कौ मन राखै काम -सूरदास
- उनहीं कौ मन राखैं काम -सूरदास
- उन्नति (महाभारत संदर्भ)
- उन्माथ
- उन्मुच
- उन्ह कौं ब्रज बसिबौ -सूरदास
- उन्ह ब्रजदेव नैकु -सूरदास
- उपँगसुत हाथ दई हरि पाती -सूरदास
- उपकार (महाभारत संदर्भ)
- उपकीचक
- उपकीचकों का सैरन्ध्री को बाँधकर श्मशानभूमि में ले जाना
- उपकृष्ण
- उपगहन
- उपगिरि
- उपचक्र
- उपचित्र
- उपजला
- उपत्यक
- उपदानवी
- उपदेव
- उपदेव (उग्रसेना)
- उपदेव (बहुविकल्पी)
- उपदेवा
- उपनंद
- उपनंद (नाग)
- उपनंद (मृदंग)
- उपनन्द
- उपनन्द (अनुचर)
- उपनन्द (नाग)
- उपनन्द (बहुविकल्पी)
- उपनन्द (मृदंग)
- उपनन्द (वसुदेव पुत्र)
- उपनन्दक
- उपनयन संस्कार
- उपप्लव्य
- उपबर्हण
- उपमन्यु
- उपमन्यु (बहुविकल्पी)
- उपमन्यु (व्याध्रपाद पुत्र)
- उपमन्यु का शिव विषयक आख्यान
- उपमन्यु को महादेव का वरदान
- उपमन्यु द्वारा महादेव की तपस्या
- उपमन्यु द्वारा महादेव की स्तुति
- उपमन्यु द्वारा शिवसहस्रनामस्तोत्र का वर्णन
- उपमा धीरज तज्यौ निरखि छबि -सूरदास
- उपमा धीरज तज्यौ निरखि छवि -सूरदास
- उपमा नैन न एक रही -सूरदास
- उपमा हरितनु देखि लजानी -सूरदास
- उपयाज
- उपरिचर