उपमा हरितनु देखि लजानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


उपमा हरि तनु देखि लजानी।
कोउ जल मै, कोउ बननि रही दुरि, कोउ कोउ गगन समानी।।
मुख निरखत ससि गयौ अंबर कौ, तड़ित दसन छबि हेरि।
मीन कमल, कर, चरन, नवन डर, जल मैं कियौ बसेरि।।
भुजा देखि अहिराज लजाने, बिवरनि पैठे धाइ।
कटि निरखत केहरि डर मान्यौ, वन वन रहे दुराइ।।
गारी देहिं कबिनि कै बरनत, श्रीअँग पटतर देत।
‘सूरदास’ हमकौं सरमावत, नाउँ हमारौ लेत।।1757।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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