ईश-विरोधी धर्म-विरोधी भाव जायँ सब भाग।
माँ सुलगा दो हृदय देश में श्याम-विरह की आग॥
सबकी सेवा में हो, सबकी उन्नति में अनुराग।
पर अवनति-अपकार अशुभ का जीवन में हो त्याग॥
ईश-विरोधी वस्तुमात्र में मन में रहे विराग।
सदा रहे आनन्द-शान्ति शाश्वत, हो शुचि बड़भाग॥
ज्योतिर्मय हो जीवन सारा, मिट जाये जग-राग।
प्रभु-पद-प्रेम पुनीत शीघ्र हो उठे मधुरतम जाग॥