इहिं अंतर भिनुसार भयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भैरवी



इहिं अंतर भिनुसार भयौ।
तारा गन सब गगन छपाने, अरुन उदित अँधकार गयो।
जानी म‍हरि, काज-गृह लागी, निसि कौ सब दुख भूलि गयौ।
प्रात: स्‍नान करन जमुना कौ, नंदहिं तुरत उठाइ दयौ।
मथनहारि सब ग्‍वारि बुलाई, भोर भयौ उठि मथौ दह्यौ।
सूर नंद घरनी आपुन हू, मथन मथानी-नेति गह्यौ।।520।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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