इहिं अंतर भिनुसार भयौ।
तारा गन सब गगन छपाने, अरुन उदित अँधकार गयो।
जानी महरि, काज-गृह लागी, निसि कौ सब दुख भूलि गयौ।
प्रात: स्नान करन जमुना कौ, नंदहिं तुरत उठाइ दयौ।
मथनहारि सब ग्वारि बुलाई, भोर भयौ उठि मथौ दह्यौ।
सूर नंद घरनी आपुन हू, मथन मथानी-नेति गह्यौ।।520।।