उपमा नैन न एक रही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


 
उपमा नैन न एक रही।
कवि जन कहत कहत सब आए, सुधि करि नाहि कही।।
कहि चकोर विधुमुख विनु जीवत, भ्रमर नहीं उड़ि जात।
हरिमुख कमल कोष बिछुरे तै, ठाले कत ठहरात।।
ऊधौ बधिक व्याध ह्वै आए, मृग सम क्यौ न पलात।
भागि जाहि बन सघन स्याम मैं, जहाँ न कोऊ घात।।
खजन मनरंजन न होहिं ये, कबहु नहीं अकुलात।
पंख पसारि न होत चपल गति, हरि समीप मुकुलात।।
प्रेम न होइ कौन विधि कहियै, झूठै ही तन आड़त।
'सूरदास' मीनता कछू इक, जल भरि कबहु न छाँड़त।।3572।।

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