उनमैं पाँचौ दिन जौ बसियै।
नाथ तुम्हारी सौ जिय उपजत, बहुरि अपुनपौ कसियै।।
वह विनोद वह लीला रचना, देखे ही बनि आवै।
मोकौं बहुरि कहाँ वैसौ सुख, बड़भागी जो पावै।।
मनसा बाचा और कर्मना, हौ न कहत कछु राखी।
‘सूर’ काढ़ि डारयौ ब्रज तै ज्यौ, दूध माँझ तै माखी।।4150।।