उठे नंद-लाल सुनत जननी मुख बानी।
आलस भरे नैन, सकल सोभा की खानी।
गोपी जन विथकित ह्वै चितवति सब ठाढ़ी।
नैन करि चकोर, चंद-बदन प्रीति बाढ़ी।
माता जल भारी लै, कमल-मुख पखारयौ।
नैन नीर परस करत आलसहिं बिसारयौ।
सखा द्वार ठाढ़े सब, टेरत हैं बन कौं।
जमुना-तट चलौ कान्ह, चारन गोधन कौं।
सखा सहित जेंवहु, मैं भोजन कछु कीन्हौं।
सूर स्याम हलधर सँग सखा बोलि लीन्हौ।।441।।