उन ब्रजदेव नैंकु चित करते -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


उन ब्रजदेव नैकु चित करते।
कछु जिय आस रहति विधि बस जौ, बहुरहु फिरि फिरि मिलते।।
कह कहिऐ हरि सब जानत है, या तन की गति ऐसी।
'सूरदास' प्रभु हित चित मिलियौ, नातरु हम गरियै सी।। 3376।।

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