उदय हु‌ए जब श्रीवृन्दावन-चन्द्र -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग बिहाग - तीन ताल


उदय हु‌ए जब श्रीवृन्दावन-चन्द्र पूर्णतम चन्द्रस्वरूप।
उज्ज्वल स्निग्ध सुधामयि शीतल किरणें लहरा उठीं अनूप॥
पूर्ण पूर्णिमा प्रकटी पावन, हु‌आ अविद्या-तमका नाश।
प्रेम-प्रभा हु‌ई उद्भासित, छाया शुद्ध सत्त्व-‌उल्लास॥
पावन यमुना-पुलिन प्रकट हो, छेड़ी मोहिनि मुरली-तान।
किया श्यामने प्रेममूर्ति व्रज-सुन्दरियोंका प्रिय आह्वान॥
भूल गयीं अग-जगको, भूलीं देह-गेहका सारा भान।
जो जैसे थी, वैसे ही चल पड़ी, छोड़ लज्जा-भय-मान॥
होता उदय मधुर रस नव-नव रूपोंमें जब कृष्णानन्द।
रुक पाता न पलक प्रेमीका तब रस-लोलुप मन स्वच्छन्द॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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